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गोशालक निष्फल रहा
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"देवानु प्रिय सद्दाल पुत्र ! यहाँ 'महागोप' पधारे थे क्या"-अब ‘महागोप' का दूसरा विशेषण देते हुए गाशालक ने पूछा ।
"महागोप कौन हैं ?"
"श्रमण भगवान् महावीर महागोप (ग्वाल) हैं । वे संसार रूपी भयंकर महा वन में भटक कर दुःखी होते हुए कटते, कुचलते, त्रास पाते और नष्ट होते हुए असहाय जीव रूपी गौओं को अपने धर्ममय दण्ड से रक्षण करते हुए मुक्ति रूपी महान सुरक्षित बाड़े में पहुँचा देते हैं । इसलिए वे महागोप हैं ' -गोशालक ने सद्दालपुत्र को प्रसन्न करने के लिए कहा।
"यहाँ महासार्थवाह पधारे थे ?" "आपका प्रयोजन किन महासार्थवाह से है ?"
"श्रमण भगवान महावीर महा सार्थवाह हैं । संसाराटवी में दुःखी हो कर नष्ट एवं लुप्त होते हुए भव्य जीवों को धर्म-मार्ग पर अपने संरक्षण में चलाते हुए मोक्ष महापत्तन में सुखपूवक पहुँचाते हैं । इसलिए वे महासार्थवाह हैं "-गोशालक सद्दालपुत्र के हृदय को अपनी ओर खिचना चाहता था।
"इस नगर में धर्म के 'महाप्रणेता' आये थे ?" "किन महान् धर्मप्रणेता से प्रयोजन है आपका ?"
"भगवान् महावीर महान् धर्म-प्रणेता (धर्मकथक) हैं । संसार-महार्णव में नष्टविनष्ट, छिन्न-भिन्न एवं लुप्त करने वाले कुमार्ग में जाते और मिथ्यात्व के उदय से अष्टकर्म रूपी महा बन्धनों में बन्धते हुए पराधीन जीवों को विविध प्रकार के हेतुओं से युक्त धर्मोपदेश दे कर संसार-महार्णव के दुर्गम प्रदेश से पार करते हैं। इसलिए भगवान महावीर स्वामी महाधर्मकथी हैं।"
"महान् ‘निर्यामक' का पदार्पण हुआ था यहाँ ?" "आप का अभिप्राय किन महानिर्यामक से है ?"
"श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी संसार रूपी महा समुद्र में डूबते, गोते खाते और नष्ट-विनष्ट होते हुए भव्य जीवों को धर्मरूपी महान् नौका में बिठा कर निर्वाण रूपी अनन्त सुखप्रद तीर पर सुरक्षित पहुँचाने वाले हैं । इसलिये महान् निर्यामक हैं।"
___अपने परम आराध्य परम तारक भगवान् का गुण-कीर्तन, उनके प्रतिस्पर्धी गोशालक के मुंह से सुन कर सद्दालपुत्र प्रसन्न हुआ। उसने गोशालक की योग्यता, सरलता एवं हार्दिक स्वच्छता नापने के लिए कहा;--
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