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________________ भगवान् और सद्दालपुत्र की चर्चा कच-पाककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका भगवान् ने पुनः कहा--"सद्दालपुत्र ! देव ने तुम्हें तुम्हारे धर्मगुरु गोशालक के विध प में नहीं कहा था !" - भगवान् की बात सुन कर सद्दालपुत्र समझ गया कि "देव ने इन भगवान् महावीर स्वामा के विषय में ही कहा था । ये ही सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हैं । मुझे इन्हें पीठ फलकादि के लिए आमन्त्रण देना चाहिए।" वह उठा वन्दना-नमस्कार कर के बोला;--"भगवन् ! नगर के बाहर मेरी पाँच-सौ दुकानें हैं। वहाँ से आप अपने योग्य पीठ-संस्तारक आदि प्र.८त करने की कृपा करें।" भगवान् ने सद्दालपुत्र की प्रार्थना स्वीकार की और प्रासुक पडिहारे पीठ आदि प्राप्त किये। भगवान और सदालपुत्र की चर्चा एक बार सद्दाल पुत्र गीले बरतनों को सुखाने के लिए बाहर रख रहा था, तब श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने उससे पूछा--"ये भाण्ड कैसे उत्पन्न हुए ?" मद्दालपुत्र, देव से प्रेरित हो कर और भगवान् के अतिशय एवं सर्वज्ञतादि गुण देख कर प्रभावित एवं भक्तिमान् तो हुआ ही था, परन्तु अब तक वह अपने नियति-वाद से मुक्त नहीं हुआ था। इसलिए अपने सिद्धांत का बचाव करता हुआ बोला; -- "भगवान् ! पहले मिट्टी थी, फिर पानी से इसका सयोग हुआ, तत्पश्चात् इसमें क्षार (राख) मिलाई गई तदनन्तर चक्र पर चढ़ कर भाण्ड बने ।" "सद्दालपुत्र ! बरतन बनने में उत्थान यावत् पुरुषार्थ हुआ, या बिना पुरुषार्थ के ही--केवल नियति से--बरतन बन गए"--भगवान् ने पूछा। “भगवान् ! इसमें उत्थानादि की क्या आवश्यकता है ? सब कुछ जैसा बनना था, वैसा बन गया"--सद्दालपुत्र ने नियतिवाद की रक्षा करते हए उत्तर दिया। भगवान् ने सद्दालपुत्र के मिथ्यात्व विष को हटाने के लिए अंतिम हृदयस्पर्शी प्रश्न किया "सद्दालपुत्र ! यदि कोई पुरुष तुम्हारे इन बरतनों को चुरावे, हरण करे ते डफोड़ करे और तुम्हारी अग्निमित्रा भार्या के साथ दुराचार सेवन करने का प्रयत्न करे, तो ऐसे समय तुम क्या करोगे ? क्या तुम उसे दण्ड दोगे ?" "भगवन् ! मैं उस दुष्ट पुरुष की भर्त्सना करूँगा, उसे पीटूंगा, उसके हाथ-पाँव तोड़ दूंगा और अन्त में उसे प्राण-रहित कर के मार डालूंगा"--सद्दालपुत्र ने कहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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