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जगल में मंगल ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
" देवी ! आप कौन हैं और अकेली चिन्तामग्न क्यों बैठी है ? आपकी चिन्ता का कारण क्या है ?"
• महानुभाव ! मेरा परिचय और व्यथा का वर्णन तो कुछ लम्बा है । पहले आप अपना परिचय दो जिये और बताइये कि इस निर्जन स्थान पर आने का आपका उद्देश्य क्या है"--सुन्दरी ने पूछा। __ " मैं पांचाल देश के स्व. महाराज ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मदत्त हूँ। मैं . . . . . . . .
उसे आगे बोलते रोक कर युवती एकदम हर्ष-विभोर हो उठी और तत्काल खड़ी हो कर ब्रह्मदत्त से लिपट गई । उसके नेत्रों से हर्षाश्रु बह रहे थे । कुछ समय तक हर्षावेग से उससे बोला ही नहीं गया। आवेग कम होने पर वह बोली; --
“प्रियतम ! आपने मुझे जीवनदान दिया है । महासमुद्र में डूबती हुई मेरी नौका को आपने बचा लिया। इतना कह कर वह रोने लगी। विपत्तिजन्य दु:ख के स्मरण ने हृदय से हर्ष को हटा कर शोक भर दिया। वह रोने लगी। शोकावेग कम होने पर बोली
“प्रियतम ! मैं आपके मामा पुष्पचूल नरेश की पुत्री और आपकी वाग्दत्ता 'पुष्पचूला' हूँ। मैं अपने उद्यान में रही हुई वापिका के तीर पर खेल रही थी कि अचानक एक दुष्ट विद्याधर वहाँ आया और मेरा अपहरण कर के यहाँ ले आया, किन्तु मेरी दृढ़ता और कठोर दृष्टि को वह सह नहीं सका। इसलिये वह विद्या सिद्ध करने के लिये यहाँ से थोड़ी दूर, एक वंशजाल में अधो सिर लटक कर साधना कर रहा है । आज उसकी साधना पूरी हो जायगी और वह शक्ति प्राप्त कर के आएगा तथा मुझ से लग्न करने का प्रयत्न करेगा । मैं इसी चिन्ता में थी कि अब उस दुष्ट से अपनी रक्षा किस प्रकार कर सकूँगी । किन्तु मेरा सद्भाग्य कि आप पधार गए।"
"प्रिये ! तुम्हारा वह दुष्ट चोर, मेरे हाथ से मारा गया है । मैं उसे उस वंशजाल में मार कर ही यहाँ आया हूँ।".
पुष्पचूला के हर्ष में और वृद्धि हो गई । हर्ष का वेग उतरने के पश्चात् दोनों ने वहीं गन्धर्व-विवाह कर लिया । वह रात्रि उन्होंने उस प्रासाद में रह कर, सुखभोगपूर्वक व्यतीत की।
प्रातःकाल होने के बाद उन्होंने आकाश में कोलाहल सुना । कुमार ने पुष्पचूला से पूछा--"यह कोलाहल किस का हो रहा है ?" उसने कहा--"उस विद्याधर की खंडा और विशाखा नाम की दो बहिनें अपने भाई का मेरे साथ लग्न कराने के लिए, सामग्री ले कर, अपनी सेविकाओं के साथ यहाँ आ रही है । इसलिए आप कहीं छिप जाइए।
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