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________________ १४ तीर्थकर चरित्र भाग ३ पाँव रख कर एक ओर कूद पड़ता। फिर चढ़ता और उतरता । यों हाथी से खेल खेलता रहा । कुमार और हाथी के ये दाँव-पेच चल ही रहे थे कि बादलों की घटा चढ़ आई और वर्षा होने लगी। हाथी थक चुका था। वर्षा के वेग से वह घबराया और शीघ्र ही एक ओर भाग निकला। दिव्य खड्ग की प्राप्ति भटकता हुआ कुमार एक नदी के तट पर पहुंचा और साहस कर के उसको पार कर गया। नदी के उस पार एक उजड़ा हुआ नगर था। ब्रह्मदत उस नगर की ओर बढ़ा। मार्ग की झाड़ियों में एक वंशजाल (बांसों का झुण्ड) थी। उसके निकट भूमि पर उसे एक जाज्वल्यमान अपूर्व खड्ग दिखाई दिया, जो सूर्य के प्रकाश से अपनी किरणें चारों ओर छिटका रहा था । निकट ही उसका म्यान भी रखा हुआ था। ब्रह्मदत्त ने खड्ग उठा लिया । अपूर्व एवं अलौकिक शस्त्रळाभ से ब्रह्मदत्त उत्साहित हुआ और खड्ग को हाथ में पकड़ कर वंशजाल पर चला दिया, किन्तु तत्काल ही वह चौंक पड़ा । उसके निकट ही एक मनुष्य का कटा हुआ मस्तक गिरा । उसके गले से रक्त की धाराएँ निकल रही थीं, किन्तु ओष्ठ अभी तक कुछ हिल रहे थे, जिससे लगता था कि वह कुछ जाप कर रहा था। उसने कटे हुए बाँसों में देखा, तो वहाँ मनुष्य का धड़ पड़ा था जो रक्त के फव्वारे छोड़ता हुआ छटपटा रहा था । ब्रह्मदत्त का हृदय ग्लानि से भर गया। वह अपने आपको धिक्कारता हुआ पश्चात्ताप कर रहा था। उसे अपने अविवेक पर खेद होने लगा। एक निरपराध साधक को मार कर हत्यारा बनना उसे सहन नहीं हो रहा था। वह खिन्नता लिये हए आगे बढ़ा। जंगल में मंगल चलते-चलते वह एक मनोहर उद्यान में पहुँचा। उस उद्यान में उसने एक सात खंडों वाला भव्य भवन देखा । ब्रह्मदत्त को आश्चर्य हुआ। इस निर्जन दिखाई देने वाले वन में यह उत्तम प्रासाद कैसा ? कुतूहल लिये हुए वह भवन में घुसा । वह ऊपर के खंड में पहुँचा, तो उसे देवांगना के समान उत्कृष्ट सौंदर्य की स्वामिनी एक युवती, चिन्तामग्न मुद्रा में दिखाई दी । कुमार उसके निकट पहुँचा और मृदु वचनों से बोला;-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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