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________________ ___२६४ .............. तीर्थंकर चरित्र भाग ३ लीजिये । राजा ने उस गजराज को पकड़वा कर मैंगवा लिया और गाँवों में भारी सांकल डाल कर थम्बे से बांध दिया। तपस्वियों ने उसे बन्धन में देख कर रोषपूर्वक कहा-- "कृतघ्न ! हमने तेरा पालन-पोषण किया। इसका बदला तेने हमारा आश्रम नष्ट कर के दिया । अब भोग अपने पाप का फल ।" हाथी उन्हें देख कर और रोषपूर्ण वचन सुन कर समझ गया कि 'मुझे बन्धन में डलवाने का काम इन तपस्वियों ने ही किया है। वह कोधित हुआ और बलपूर्वक आलानस्तंभ को तोड़ डाला, साँकले तोड़ दी, तापसों को उठा कर एक ओर फेंक दिया और वन की ओर दोड़ गया । जब सेचनक के वन में चले जाने का समाचार महाराजा का मिला, तो स्वयं अश्वारूढ़ हो, अपने कुमारों तथा अन्य लोगों के साथ उसे पकड़ने वन में पहुंचे और हाथी को चारों ओर से घेर लिया । हस्तिपाल भी उस रुष्ट गजराज से डर रहे थे । उन्होंने उसके सामने रसोले खाद्य पदार्थ डाले, परन्तु उसने उपेक्षा कर दी। सभी लोग घेरा डाले, उसे पकड़ने का उपाय सोच रहे थे। कुमार नन्दीसेन हाथो को देखते हो आकर्षित हुए । उनका सम्बोधन सुन कर हाथा उन्हें देखने लगा । नन्दीसेन को देखते ही हाथी शांत हो गया। उसे वह व्यक्ति परिचित लगा। उसके मन में ऊहापाह हुआ । गम्भीर चिन्तन के फलस्वरूप उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया और अपना ब्राह्मण का भव दिखाई दिया। उसे नन्दीसेन का वह परिचय भी ज्ञात हुआ, जब वह यज्ञ में सेवक का कार्य करता था।' हाथी स्तब्ध, शान्त और निष्पन्द हो गया। नन्दीसेन के मन में हायी के प्रति प्रेम जगा । नह हायो को सम्बाधन करता हुआ उसके निकट पहुँचा और दाँत पकड़ कर ऊपर चढ़ गया। हाथो चुप-चाप स्वस्थान आया और खूटे से बध गया। राजा ने उसे सभी हाथियों में प्रधान बनाया। यह से चनक हाथी महाराजा का प्रोतिपात्र हुआ । महाराजा श्रेणिक के महारानी काली आदि से कालकुमार आदि अनेक पुत्र हुए। नन्दीसेनजी की दीक्षा और पतन ग्र मानुग्राम विचरते और भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हुए त्रिलोकपूज्य भगवान् महावीर प्रभु राजगृह पधारे । महाराजा श्रणिक, गजकुमार, महारानियाँ और नागरिकजन भगवान् को वन्दन करन गुगशीलक उद्यान में आये । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। परिषद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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