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________________ २६२ कक तीर्थंकर चरित्र भाग ३ कककककककककककक ककककककककककककककक कककककककक कककव महाराजा श्रेणिक विनय एवं भक्ति पूर्वक धर्म अनुरक्त हो कर महात्मा की स्तुति करता हुआ वन्दना करता है + । 2 नन्दीसेन कुमार और सेचनक हाथी एक ब्राह्मण ने यज्ञ किया। उसे यज्ञ में कार्य करने के लिये एक सेवक की आवश्यकता हुई। उसने एक दास से कहा, तो दास ने माँग रखी-"यदि ब्राह्मणों के भोजन कर लेने के बाद बचा हुआ भोजन मुझे दो, तो में आपके यज्ञ में काम कर सकता हूँ ।' ब्राह्मण ने माँग स्वीकार कर ला । वह सेवक स्वभाव का भद्र था । उमने जन मुनियों की चर्या देखी थी । उन्हें बड़-बड़े लोगों द्वारा भक्ति और बहुमान पूर्वक आहार देते देखा था। इन साधुओं में तपस्वी सन्त भी होते हैं । ऐसे निर्लोभी पवित्र सन्तों को दान देने की भावना उसके मन में कभी की बसों हुई थी। परन्तु वह दरिद्र था । उसका पेट भरना भी कठिन हो रहा था। यज्ञ के कार्य में सेवा देने से उसे बचा हुआ बहुत-सा भोजन मिलता था । उसे अब अपनी भावना सफल होने का अवसर मिला था । प्राप्त भोजन अपने अधिकार में करने के बाद वह मुनियों के उधर निकलने की गवेषणा करने लगा। उनको भावना सफल हुई । सन्त उसके यहाँ पधारे और उसने भावोल्लास पूर्वक सन्तों को आहार दान किया। आज उसकी प्रसन्नता का पार नहीं था। इस प्रकार वह प्रतिदिन किसी निग्रंथ सन्त या सती को दान करता रहा । शुभ भावों में देव आयु का बन्ध किया और मृत्यु पा कर स्वर्ग में गया । देवायु पूर्ण कर वह महाराजा श्रेणिक का 'नन्दीसेन' नामक पुत्र हुआ । एक महावन में हाथियों का झुण्ड था । एक विशालकाय बलवान युवक गजराज उस यूथ का अधिपति था । यूथ में अन्य सभी हथनियाँ थी । वह उन सब का स्वामी था और उनके साथ भोग भोगता हुआ विचर रहा था। हथनियाँ गर्भवती होती और उनके + उत्तराध्ययन अ. २० से स्पष्ट होता है कि श्रेणिक नरेश महात्मा श्री अनाथी मुनिजी के उपदेश से प्रतिबोध पाया था । किन्तु त्रि. श. चरित्र आदि में भ महावीर से प्रतिबोधित होना लिखा है । यह उत्तराध्ययन सूत्र के आधार से अविश्वसनीय लगता है । अचार्य पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ने 'जैन-धर्म का मौलिक इतिहास' भाग १ पृ. ४०३ में त्रिश.पु. च. और 'महावीर चरियं' के आधार से भ. महावीर द्वारा सम्यक्त्व लाभ का लिखा । परन्तु आपने ही पृ. ५१३ में अनाथी मुनि द्वारा बोध प्राप्ति का भी लिखा, सो यही ठीक लगता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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