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तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
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श्रेणिक से कहा--" यह मेरा सौभाग्य है कि आप मेरे अतिथि बने ।" दुकान बन्द कर के सेठ, श्रेणिक को साथ ले कर घर आये । श्रेणिक को स्नान कराया, अच्छे वस्त्र पहनने को दिये और अपने साथ भोजन कराया । अब श्रेणिक वहीं रह कर सेठ के व्यापार में सहयोगी बना । कुछ दिनों के बाद एक दिन सेठ ने कुमार से कहा--" में अपनी प्रिय पुत्रा आपको देना चाहता हूँ । कृपया स्वीकार कीजिये ।"
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श्रेणिक ने कहा--" आपने मेरा कुल शील तो जाना ही नहीं, फिर अनजान व्यक्ति को अपनी प्रियपुत्री कैसे दे रहे हैं ? "
--" मैने आपके गुणों से ही आपका कुल और शील जान लिया है । अब विशेष जानने की आवश्यकता नहीं रही ।"
सेठ के अनुरोध को स्वीकार कर के श्रेणिक ने नन्दा के साथ लग्न किये और भोग भोगता हुआ रहने लगा ।
श्रेणिक को राज्य प्राप्ति
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प्रसेनजित राजा रोग ग्रस्त हो गए । उन्होंने श्रेणिक को खोज कर के लाने लिए बहुत-से सेवक दौड़ाये । खोज करते-करते कुछ सेवक वेणातट पहुँचे और श्रेणिक से मिले । पिता के रोगग्रस्त होने तथा राजा द्वारा बुलाया जाने का सन्देश श्रेणिक को मिला । श्रेणिक ने अपनी पत्नी नन्दा को समझा कर अनुमत किया और सेठ से आज्ञा ले कर चल दिया । चलते समय श्रेणिक ने वहां के भवन की भीत्ति पर " मैं राजगृह नगर का गोपाल हूँ । ये परिचयात्मक अक्षर लिख कर आगे बढ़ा। राजगृह पहुँचने पर रुग्ण पिता के चरणों में प्रणाम किया । पिता के हर्ष का पार नहीं रहा । उन्होंने तत्काल श्रेणिक का अपने उत्तराधिकारी के रूप में राज्याभिषेक किया । अब प्रसेनजित राजा शान्तिपूर्वक भगवान् पार्श्वनाथ एवं नमस्कार महामन्त्र तथा चार शरण चितारता हुआ आयु पूर्ण कर स्वर्गवासी हुआ ।
तेरा बाप कौन है - अभयकुमार से प्रश्न
श्रेणिक के राजगृह जाने के बाद सगर्भा नन्दा को दोहद उत्पन्न हुआ--" मैं हाथ पर आरूढ़ हो कर धूमधाम से विचरूँ और जीवों को अभयदान दूं।" सुभद्र मेठ प्रभाव -
7 गो= पृथ्वी, पाल= राजा ।
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