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________________ पुत्र-परीक्षा २३७ राजा की धारिणी रानी की कुक्षि से पुत्र हो कर उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'श्रेणिक.' रखा। पुत्र-परीक्षा राजा प्रसेनजित ने सोचा--'मेरी प्रौढ़ अवस्था बीत चुकी और वृद्धावस्था चल रही है । मेरे इन पुत्रों में ऐसा कौन योग्य है कि जो पड़ोसी राज्यों के मध्य रहे हुए मगध के विशाल राज्य को सुरक्षित रख सके। पुत्र तो सभी प्यारे हैं, परन्तु राज्य-संचालन और संरक्षण की योग्यता सब में नहीं हो सकती। अतएव योग्यता की परीक्षा कर के अधिकार देना ही उत्तम होगा।' ___ गजा ने परीक्षा का पहला आयोजन किया। सभी राजकुमारों को एकसाथ भोजन करने बिठाया और खीर के पात्र सब के सामने रखवा दिये । राजा गवाक्ष में बैठा हुआ देख रहा था । भोजन करना प्रारम्भ करते ही व्याघ्र के समान भयंकर कुत्ते लपकते हुए आये और राजकुमारों के भोजन-पात्र पर झपटे । एक श्रेणिक को छोड़ कर सभी राजकुमार, कुत्तों से डर कर भाग गए। श्रेणिक ने भाइयों की छोड़ी हुई थालियां कुत्तों की ओर खिसका दी और स्वयं शान्ति के साथ भोजन करता रहा । कुत्ते थालिये चाट रहे थे और श्रेणिक भरपेट भोजन कर के तृप्ति का अनुभव कर रहा था। नरेश ने देखा--"एक श्रेणिक ही ऐसा है जो आसपास के शत्रुओं को अपनी युक्ति से दूर ही उलझाये रख कर राज्यश्री का निराबाध उपभोग कर सकेगा, दूसरे तो सभी अयोग्य हैं । जो अपने भोजन की भी रक्षा नहीं कर सके, वे विशाल राज्य को कैसे सम्भाल सकेंगे?" । ___ एक परीक्षा से संतुष्ट नहीं होते हुए राजा ने दूसरी परीक्षा का आयोजन किया । लड्डूओं से भरे हुए करंडिये और जल से भरे हुए मिट्टी के कलश--जिन के मुंह मुद्रित कर के बंद कर दिये थे। एक करंडिया और एक कलश प्रत्येक राजकुमार को--इस आदेश के साथ दिया कि “वे बिना ढक्कन खोले और छिद्र किये लड्डू खाए और पानी पीये।" कुमारों के सामने उलझन खड़ी हो गई। वे सोचने लगे--"पिताजी ने तो उलझन में डाल दिया। क्या ऐसा हो सकता है ? खावें-पीवें, किन्तु ढक्कन भी नहीं खोले और छिद्र भी नहीं करें। नहीं, यह दैविक-शक्ति हम में नहीं, न हम मन्त्रवादी हैं ।" उन करंडियों और घड़ों को छोड़ कर अन्य सभी कुमार चले गये । एक श्रेणिक ही बचा जो शान्ति से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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