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________________ २१६ तीर्थकर चरित्र-भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक-poran कवान इस द्रव्य पर आपका नहीं, इस कुमारी का अधिकार है। भगवान् को पारणा इसने कराया है, आपने नहीं । अतएव इस धन की अधिकारिणी यही है । यह जिसे दे, वही ले सकता राजा ने चन्दना से पूछा--"शुभे ! तू ये रत्नादि किसे देना चाहती है ?" --"इस द्रव्य पर स्वामित्व इन सेठ का है। ये मेरे पालक-पोषक पिता हैं।" चन्दना के निर्णय के अनुसार समस्त द्रव्य धनावह सेठ ने ग्रहण किया । शकेन्द्र ने शतानिक राजा से कहा-- " राजेन्द्र ! यह कुमारिका काम-भोग से विमुख है और चरम-शरीरी है । भगवान् महावीर को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद यह भगवान् की प्रथम एवं प्रमुख शिष्या होगी। इसलिये जब तक भगवान् को केवलज्ञान नहीं हो जाय, तब तक आप इसका पालन करें।" __ शकेन्द्र भगवान् को वन्दन करके स्वर्ग चले गए । शतानिक राजा चन्दना को ले गया और अपनी पुत्रियों के साथ क्वारे अन्तःपुर में रखा और पालन करने लगा। चन्दना भगवान् को केवलज्ञान होने की प्रतीक्षा करती और संसार की अनित्यादि स्थिति का चिन्तन करती हुई रहने लगी। धनावह सेठ ने अपनी मला भार्या को घर से निकाल दी। उसके दुष्कर्म का उदय हो गया। वह अनेक प्रकार के रोग-शोकादि दुःखों को भोगतो हुई और दुर्ध्यान में सुलगती हुई मर कर नरक में गई। कौशाम्बी से विहार कर के भगवान् सुमंगल गाँव पधारे। यहाँ तीसरे स्वर्ग के स्वामी सनत्कुमारेन्द्र ने आ कर भगवान् को वन्दन-नमस्कार किया। सुमंगल से चल कर भगवान् सत्क्षेत्र पधारे। वहाँ माहेन्द्र कल्प का इन्द्र आया और भक्तिपूर्वक वन्दननमस्कार किया। वहाँ से प्रभु पालक गाँव पधारे। उस गाँव से भायल नामक वणिक यात्रार्थ जा रहा था। उसने भगवान् को सामने आते देखा, तो अपशकुन मान कर कोधित हुआ । वह खड्ग ले कर प्रभु को मारने आया। उस समय सिद्धार्थ व्यन्तर ने उसीके खड्ग से उसका मस्तक काट कर मार डाला । पालक गाँव से भगवान् चम्पा नगरी पधारे और स्वादिदत्त ब्राह्मण की यज्ञशाला में ठहरे । वहाँ भगवान् ने बारहवाँ चातुर्मास किया और चार महीने की दीर्घ तपस्या कर ली। यहाँ पूर्णभद्र और मणिभद्र नाम के दो यक्षेन्द्र रोज रात्रि के समय आ कर भगवान * यह देव भी अजीब है। क्या वह उसे बिना मारे नहीं हटा सकता था ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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