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________________ १६० तीर्थकर चरित्र-भा. ३ कककककककककककककककककककककककककककककककक क ककककक-aripoornarकारका अब गोशालक अष्टांग निमित्त के योग से लोगों को हानि-लाभ, सुख-दुःख और जीवनमरण बताने लगा। इससे उसकी महिमा विशेष बढ़ी। अपनी महिमा को व्यापक देख गोशालक अभिमानी बन कर अपने को तीर्थकर बताने लगा। सामान्य लोग भी उसे तीर्थकर मानने लगे। लोगों को भावी हानि-लाभ, सुख-दुःख और जीवन-मरण जानने की लालसा रहती ही है । सच्चा भविष्य बताने वाले को वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी मान लेते हैं और उसका शिष्यत्व स्वीकार कर उसे 'तीर्थकर' मानने लगते हैं । पूर्व की घटनाओं के कारण गोशालक एकान्त नियतिवादी तो बन ही चुका था। अब उसने अपना स्वतन्त्र मत चलाना प्रारम्भ कर दिया। इसी के सहारे वह तीर्थंकर कहला सकता था। महान् साधक आनन्द श्रावक की भविष्यवाणी सिद्धार्थपुर से विहार कर के भगवान् वैशाली नगरी पधारे । सिद्धार्थ राजा के मित्र शंख गणाधिपति ने भगवान् का बहुत आदर-सत्कार कर के वन्दन किया । वैशाली से विहार कर के भगवान् वाणिज्य ग्राम पधारे और ग्राम के बाहर प्रतिमा धारण कर के ध्यानारूढ़ हुए। - वाणिज्य ग्राम में 'आनन्द' नाम का एक श्रावक रहता था। वह भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का था । उसे अवधिज्ञान प्रारत हो गया था और वह निरन्तर बेले-बले की तपस्या करता हआ आतापना ले रहा था । वह प्रभ को वन्दन करने आया और हाथ जोड़ कर बोला; ___ "भगवन् ! आपने घोर-परीषह सहन किये । आपका शरीर और मन वज्र के समान दृढ़ है, जिससे घोर परीषह से भी विचलित नहीं होते । अब आपको केवलज्ञान की प्राप्ति होने ही वाली है।" प्रभु को वन्दना कर के आनन्द लौट गया। भगवान् प्रतिमा पाल कर श्रावस्ति नगरी पधारे और वहाँ दसवाँ चातुर्मास किया। भद्र महाभद्र प्रतिमाओं की आराधना चातुर्मास पूर्ण होने पर नगर के बाहर पारणा कर के भगवान् सानुयष्टिक गाँव पधारे और वहाँ भद्र प्रतिमा धारण कर ली । इस प्रतिमा में पूर्वाभिमुख खड़े रह कर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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