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तीर्थंकर चरित्र
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती चरित्र
पूर्व-भव
भगवान् अरिष्टनेमिजी के मुक्तिगमन के पश्चात् उन्हीं के धर्मतीर्थ में इस भरतक्षेत्र का अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट ब्रह्मदत्त हुआ। उसके पूर्वभव का उल्लेख इस प्रकार है।
. इस जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में साकेतपुर नगर था । वहाँ के चन्द्रावतंस नरेश का सुपुत्र राजकुमार मुनिचन्द्र था । पवित्रात्मा मुनिचन्द्र ने संसार एवं कामभोग से विरक्त हो कर श्री सागरचन्द मुनि के पास निग्रंथ-दीक्षा ग्रहण की। कालान्तर में गुरु के साथ विचरते हुए वे भिक्षा के लिए एक ग्राम में गये। भिक्षा ले कर लौटने में उन्हें विलम्ब हो गया । इतने में गुरु आदि विहार कर आगे बढ़े। मुनिचन्द्र मुनि पीछे-पीछे चले, किन्तु आगे अटवी में जाते हुए मार्ग भूल कर भटक गए । क्षुधा, तृषा, थकान और अकेले रहने
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