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________________ १२६ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ हो गए । देशना सुन कर कितने ही लोगों ने सर्व विरति प्रव्रज्या स्वीकार की, कितनों ही ने देश विरति ग्रहण की और वासुदेव-बलदेव आदि बहुत से लोगों ने सम्यग्दर्शन रूपी महारत्न ग्रहण किया। त्रिपृष्ठ की क्रूरता और मृत्यु त्रिपृष्ठ वासुदेव ३२००० रानियों के साथ भोग भोगते हुए काल व्यतीत करने लगे। महारानी स्वयंप्रभा से 'श्री विजय और विजय' नाम के दो पुत्र हुए एक बार रतिसागर में लीन वासुदेव के पास कुछ गायक आये । वे संगीत में निपुण थे। विविध प्रकार के श्रुति-मधुर संगीत से उन्होंने वासुदेव को मुग्ध कर लिया। वासुदेव ने उन्हें अपनी संगीतमण्डली में रख लिया। एक बार वासुदेव उन कलाकारों के सुरीले संगीत में गृद्ध हो कर शय्या में सो रहे थे। वे उनके संगीत पर अत्यंत मुग्ध थे। उन्होंने शय्यापालक को अज्ञा दी कि "मुझे नींद आते ही संगीत बन्द करवा देना ।" नरेन्द्र को नींद आ गई, किन्तु शय्यापालक ने संगीत बन्द नहीं करवाया । वह स्वयं राग में अत्यंत गृद्ध हो गया था । रातभर संगीत होता रहा । पिछली रात को जब वासुदेव की आँख खुली, तो उन्होंने शव्या पालक से पूछा;-- ' मुझ नींद आने के बाद संगीत-मण्डली को बिदा क्यों नहीं किया ?" -" महाराज ! मैं स्वयं इनके रसीले राग और सुरीली तान में मुग्ध हो गया था-इतना कि रात बीत जाने का भी भान नहीं रहा"-शय्यापालक ने निवेदन किया : यह सुनते ही वासुदेव के हदय में क्रोध उत्पन्न हो गया। उस समय तो उन्होंने कुछ भी नहीं कहा, किन्तु दूसरे ही दिन सभा में शय्यापालक को बुलवाया और अनुचरों का। आज्ञा दा कि " इस संगीत-प्रिय शय्यापालक के कानों में उबलता हुआ राँगा भर द । यह कर्तव्य-भ्रष्ट है । इसने राग लुब्ध हो कर राजाज्ञा का उल्लंघन किया और संगीतज्ञों को रातभर नहीं छोड़ा।" नरेश की आज्ञा का उसी समय पालन हुआ । बिचारे शय्यापालक को एकान्त में ले जा कर, उबलता हुआ राँगा कानों में भर दिया। वह उसी समय तीव्रतम वेदना भोगता हुआ मर गया । इस निमित्त से वासुदेव ने भी क्रूर परिणामों के चलते अशुभतम कर्मों का बन्ध कर लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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