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राजा के मन में खटका तो था ही। उसने एक दिन अपनी सभा से यह प्रश्न
किया:
'साम्राज्य के सामन्त, राजा, सेनापतियों और वीरों में कोई असाधारण शक्तिशाली परम पराक्रमी, महाबाहु युवक कुमार आपके देखने में आया है ?"
राजा के प्रश्न के उत्तर में मन्त्रियों, सामन्तों और अन्य अधिकारियों ने कहा" नरेन्द्र ! आपकी तुलना में ऐसा एक भी मनुष्य नहीं है । आज तक ऐसा कोई देखने में नहीं आया और अब होने की सम्भावना भी नहीं है ।"
राजा ने कहा;
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तीर्थङ्कर चरित्र -- भाग ३
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'आपका कथन मिष्ट-भाषीपन का है, वास्तविक नहीं। संसार में एक से बढ़ कर दूसरा बलवान् होता ही है । यह बहुरत्ना वसुन्धरा है । कोई न कोई महाबाहु होगा ही ।" राजा की बात सुन कर एक मन्त्री गम्भीरतापूर्वक बोला ;
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" राजेन्द्र ! पोतनपुर के नरेश 'रिपुप्रतिशत्रु' अपर नाम 'प्रजापति' के देवकुमार के समान दो पुत्र हैं । वे अपने सामने अन्य सभी मनुष्यों को घास के तिनके के समान गिनते हैं । " मन्त्री की बात सुन कर राजा ने सभा विसर्जित की और अपने चण्डवेग नाम के दूत को योग्य सूचना कर के, प्रजापति राजा के पास पोतनपुर भेजा । दूत अपने साथ बहुत से घुड़सवार योद्धा और साज-सामग्री ले कर आडम्बरपूर्वक पोतनपुर पहुँचा । वहाँ प्रजापति की सभा जमी हुई थी। वह अपने सामंत राजाओं, मन्त्रियों, अचल और त्रिपृष्ठकुमार, राजपुरोहित एवं अन्य सभासदों के साथ बैठा था । संगीत, नृत्य और वादिन्त्र से वातावरण मनोरञ्जक बना हुआ था। उसी समय बिना किसी सूचना के, द्वारपाल की अवगणना करता हुआ, चण्डवेग सभा में पहुँच गया राजदूत को इस प्रकार अचानक आय हुआ देख कर राजा और सभाजन स्तंभित रह गए। राजदूत का सम्मान करने के लिए राजा स्वयं सिंहासन से उठा और सभाजन भी उठे बिठाया गया और वहां के हालचाल पूछे । राजदूत के असमय में अचानक आने से वाता - वरण एकदम शांत, उदासीन और गम्भीर बन गया । वादिन्त्र और नाच-गान बन्द हो गए । वादक गायिकाएँ और नृत्यांगनाएँ चली गई । यह स्थिति राजकुमार त्रिपृष्ठ को अखरी । उसने अपने पास बैठे हुए पुरुष से पूछा --
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राजदूत को आदरपूर्वक आसन पर
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'कौन है यह असभ्य, मनुष्य के रूप में पशु, जो समय-असमय का विचार किये बिना ही और अपने आगमन की सूचना किये बिना ही अचानक सभा में आ घुसा ? और
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