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________________ ९० secstastastastese fecastastasha classocia तीर्थंकर चरित्र भाग ३ Jain Education International ashasta state of stastaste of chachcho sacsbcbcbcbseases chocolat विराधना कर के धरणेन्द्र की अग्रमहिषी हुई । इसी प्रकार वेणुदेव की छह यावत् घोष इन्द्र तक की छह अग्रमहिषियों का चरित्र है । चम्पानगरी की रुचा, सुरुवा, रुचांशा, रुचकावती, रुचकांता और एचप्रथा भी विराधना कर के असुरकुमार के भूतानन्द इन्द्र की इन्द्रानियाँ हुई । नागपुर की कमला, पिशाचेन्द्र काल की अग्रमहिषी हुई और कमलप्रभा आदि ३५ कुमारियाँ दक्षिण दिशा के व्यंतरेन्द्रों की रानियाँ हुई। उत्तर दिशा के महाकालेन्द्र की तथा व्यंतरेन्द्रों की बत्तीस रानियाँ भी इसी प्रकार हुई । अक्खुरी नगरी की सूर्यप्रभा, आतपा, अचिमाली और प्रभंकरा भी चारित्र की विराधना कर के सूर्य इन्द्र की अग्रमहिषियां हुई । मथुरा की चन्द्रप्रभा, दोषीनाभा, अचिमाली और प्रभंकरा ज्योतिषी के इन्द्र चन्द्र की महारानियाँ हुई । श्रावस्त की पद्मा और शिवा, हस्तिनापुर की सती और अंजु, काम्पिल्यपुर की रोहिणी और नवमिका और साकेत नगर की अचला और अप्सरा, ये आठों सौधर्म देवलोक के स्वामी शकेन्द्र की इन्द्रानियाँ हुई । कृष्णा कृष्णराजी वाराणसी की, रामा रामरक्षिता राजगृही की, वसु, वसुगुप्ता श्रावस्ति की, वसुमित्रा और वसुन्धरा कौशाम्बी की भी चारित्र की विराधना कर के ईशानेन्द्र की इन्द्रानियाँ हुई । ये सभी भगवान् पार्श्वनाथ से दीक्षित हुई थी और कालान्तर में काली आर्यिका के समान विराधना कर के देवियाँ हुई + 1 राजगृही नगरी के सुदर्शन गाथापति की भूता नाम की पुत्री भी काली के समान वृद्धकुमारिका थी । उसने भी भगवान् पार्श्वनाथजी से प्रव्रज्या ग्रहण की और विराधना करके सौधर्मकल्प के श्रीवतंसक विमान में देवी हुई । उसका नाम 'श्री' देवी हुआ - विमान - के नाम के अनुसार | श्री देवी के समान ही धी, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, इलादेवी, सुरादेवा, रसदेवी और गन्धदेवी । इस प्रकार कुल दस देवियों का वर्णन पुष्पचूलिका सूत्र में है । जितनी भी देवियाँ हैं, वे सभी विराधिका हैं । वे या तो प्रथम गुणस्थान से आती है, या ज्ञानदर्शन- चारित्र की बिराधना कर के आती है । भवनपति, व्यंतर और ज्योतिषी देव होना भी ऐसा ही है । सम्यग्दृष्टि के सद्भाव में कोई भी मनुष्य या तिर्यंच, एक वैमानिक देव का ही आयुष्य बांधता है । + इनका वर्णन ज्ञाताधर्मकथासूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध में है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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