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________________ ८२ तीर्थंकर चरित्र भूमि में गाड़ा गया था) निकाल कर लाया और काटकूट कर राजा के लिए बना दिया । बालक का मांस राजा को बहुत स्वादिष्ट लगा। उसने रसोइये से पूछा - " इतना स्वादिष्ट मांस किस पशु का है ?" रसोइये ने कहा- " छोटे बालक का ।" राजा ने कहा - " यह बहुत स्वादिष्ट है । अब तुम सदैव मेरे लिए मनुष्य का मांस ही बनाना । " रसोइया, राजा के लिए बालकों का हरण करने लगा और मार कर राजा को खिलाने लगा । राजा का राक्षसी - कृत्य छुपा नहीं रह सका । मन्त्रियों ने उस अधम राजा को पदभ्रष्ट कर के निकाल दिया और उसके पुत्र सिंहरथ का राज्याभिषेक कर दिया । मांस भक्षण करता हुआ सोदास बन में भटकता रहा। एक बार उसे बन में एक महर्षि के दर्शन हुए । महात्मा के उपदेश से, सोदास प्रतिबोध पा कर श्रावक हो गया । कुछ दिन बाद महापुर का राजा पुत्रविहिन मर गया । भाग्योदय से सोदास वहां का राजा हो गया । उसने दूत भेज कर अपने पुत्र से अपनी आज्ञा मानने का कहलाया । सिंहरथ ने अस्वीकार कर दिया। फिर पिता-पुत्र में युद्ध हुआ । युद्ध में सोदास की विजय हुई। किंतु विजयी सोदास ने पुत्र को दोनों राज्यों का राज्य दे कर, निर्ग्रन्थ धर्म स्वीकार कर लिया । बाल नरेश दशरथजी सिंहरथ का पुत्र ब्रह्मरथ हुआ । उसके बाद अनुक्रम से चतुर्मुख, हेमरथ, शतरथ, उदयपृथु, वादिरथ, इन्दुरथ, आदित्यर, मान्धाता, वीरसेन, प्रतिमन्यु, पद्मबन्धु, रविमन्यु. वसंततिलक, कुबेरदत्त, कुंथु, शरभ, द्विरद, सिंहदर्शन, हिरण्यकशिपु, पुञ्जस्थल, कावुस्थल और रघु आदि अनेक राजा हुए। इनमें से कुछ तो मोक्ष प्राप्त हुए और कुछ स्वर्गवासी हुए। उसके बाद अयोध्या में 'अनरण्य' नाम का राजा हुआ । उसकी 'पृथ्वीदेवी' नाम की रानी से 'अनंतरथ' और 'दशरथ' - ये दो पुत्र हुए । अनरण्य राजा के 'सहस्रकिरण नाम का एक मित्र था । वह रावण के साथ युद्ध करते हुए, जन-विनाश देख कर विरक्त हो गया । उसने प्रव्रज्या स्वीकार कर ली । मित्र के साथ अनरण्य नृप और उनके ज्येष्ठ पुत्र अनन्तरथ भी विरक्त हुए और एक मास के छोटे बालक दशरथ का राज्याभिषेक कर प्रव्रजित हो गए । राजर्षि अनरण्यजी मोक्ष प्राप्त हुए और अनन्तरथजी भूतल पर विचरने लगे । दशरथ बाल्यावस्था में ही राजा हो चुका था । वय के साथ उसका पराक्रम भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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