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हनुमान की विजय
उने सान्त्वना दी और वह अंजना सहित विमान में बैठ कर पवनंजय की खोज में निकल गए। जिस समय पवनंजय चिता में कूदने के पूर्व, अंजना की निर्दोषता की उद्घोषणा कर रहा था, उसी समय प्रतिसूर्य का विमान उधर आ पहुँचा । पवनंजय के शब्द उनके कानों में पड़े । जलती हुई चिता और उसके पास पवनंजय आदि को खड़े देख कर वे नीचे उतरे। अंजना के साक्षात् उपस्थित होते ही शोक की काली घटा छिन्न-भिन्न हो कर आनन्द की महावष्टि हो गई। महाशोक का वीभत्सतम वातावरण अचानक ही अत्यानन्द में परिवर्तित हो जाने का यह अनोखा दृश्य था । शोक के काले आंसुओं से जहाँ सभी के चेहरे भीग रहे थे, वे हर्षाधु से धुल कर उज्ज्वल होने लगे । उस भयानक बन में आनन्दोत्सव मनने लुगा । हपवेिग कम होने पर प्रतिसूर्य ने सभी को हनुपुर चलने का आमन्त्रण दिया। सभी जन विमान में बैठ कर हनपुर आये। उधर पवनंजय की माता और अंजना के पिता महेन्द्र नरेश भी ये शुभ समाचार सुन कर पत्नी सहित हनुपुर आ कर आनन्द सागर में निमग्न हो गए । हनुपुर नगर अचानक उत्सवमय हो गया। कई दिनों तक उत्सव चलता रहा । उत्सव पूर्ण होने पर अन्य सब अपने-अपने स्थान चले गए, किन्तु अत्याग्रह के कारण पवनंजय, पत्नी और पुत्र सहित वहीं रहा ।
हनुमान की विजय
हनुमान शैशव से युवावस्था में आया। उसके अंग-प्रत्यंग विकसित हुए। वह अस्त्रशस्त्र एवं शास्त्र-विद्या में निपुण हो गया। उस समय पुनः वरुण और रावण के बीच यद्ध की तय्यारी होने लगी । पवनंजय और प्रतिसूर्य को भी युद्ध का आमन्त्रण मिला, किन्तु हनुमान ने दोनों को रोका और स्वयं एक बड़ी सेना ले कर युद्ध में गया । हनुमान का पराक्रमशील व्यक्तित्व देख कर रावण प्रभावित हुआ । उसने उसे अपने उत्संग में बिठाया । वरुण के सौ पुत्र भी बलवान् थे । युद्ध इतना गम्भीर और बराबरी का होता रहा कि जिससे रावण भी विजय में सन्देहशील बन गया । किन्तु हनुमान के पराक्रमपूर्ण रणकौशल से वरुण के सभी पुत्र घिर कर बन्दी बन गए । अपने पुत्रों को बन्दी बने देख कर वरुण ने हनुमान पर धावा किया, किंतु रावण ने उसे बीच में ही रोक लिया और बड़ी देर तक युद्ध करने के बाद, कपटचाल में फाँस कर बन्दी बना लिया। रावण की विजय हो गई । वरुण ने रावण की अधीनता एवं स्वामित्व स्वीकार कर लिया । अधीनता स्वीकार करने पर वरुण और उसके पुत्र मुक्त हो गए । वरुण ने अपनी पुत्री
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