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________________ ७२ तीर्थकर चरित्र चन्द्र मकर का हो कर मध्य भवन में, मंगल मध्य का हो कर वृषभ राशि में, बुध मध्य का मीन राशि में, गुरु ऊँच का कर्क राशि में, शुक्र और शनि उच्च के मीन राशि में है । मीन लग्न का उदय है और ब्रह्म योग है। इस प्रकार सभी प्रकार से शुभोदय के सूचक हैं। हनुमान सुखपूर्वक बढ़ने लगा। अंजना भी मामा के यहाँ, वसंतमाला सहित सुखपूर्वक रहने लगी। किंतु सास के लगाये हुए कलंक का शूल उसके हृदय में चुभता रहता था। वह ऊपर से सब से हँसती-बोलती, किन्तु मन की उदासी बनी रहती । उसके दिन बाहरी कष्ट के बिना, सुखपूर्वक व्यतीत होने लगे। पवनंजय का बन-गमन वरुण, रावण का अनुशासन नहीं मान रहा था। उसने रावण के सेनापति खरदूषण को बंदी बना लिया था। किन्तु पवनंजय के प्रभाव ने वरुण को सन्धी करने के लिए विवश किया। वरुण ने रावण का अनुशासन स्वीकार कर के खर-दूषण को छोड़ दिया। इससे रावण बहुत प्रसन्न हुआ। रावण संतुष्ठ हो कर लंका की ओर गया और पवनजय अपने घर आया । राजा प्रहलाद और प्रजा ने विजयी राजकुमार का धूमधाम से नगरप्रवेश कराया। पवनंजय के मन में प्रिया-मिलन की आतुरता थी। उसे विश्वास था कि अंजना कहीं झरोखे में से देख रही होगी और आतुरता से मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी। उसने माता-पिता को प्रणाम किया और इधर-उधर देखा, किन्तु अंजना दिखाई नहीं दी। वह तत्काल अंजना के आवास में आया, परन्तु आवास तो एकदम शून्य था। उसके हृदय में खटका हुआ। सेवकों से पूछने पर सभी उदास और मौन । अंत में एक सेविका ने अंजना के कलंकयुक्त देश-निकाले की बात बताई । सुनते ही पवनंजय दहल गया। उसके हृदय में उद्विग्नता की आग लग गई। वह बिना कुछ खाये-पिये ही अपने सुसराल के लिए चल-निकला । मित्र भी साथ हो गया। पीहर में भी अंजना को स्थान नहीं मिला और बन में धकेल दी गई, यह जान कर पवनंजय का हृदय शोकाकूल हो उठा। वह पत्नी की खोज करने, अटवी में चला गया । प्रहसन मित्र के समझाने का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। इधर प्रहलाद नरेश और महेन्द्र राजा ने हजारों सेवक, अंजना की खोज करने के लिए दौड़ाये । राजा-रानी और परिवार पर चिन्ता, शोक एवं संकट छा गया। पवनंजय की माता, अपनी मूर्खता एवं क्रूरता पर पश्चाताप करती हुई भावी अनिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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