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तीर्थंकर चरित्र
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कि इस अरण्य में कल्पवृक्ष के समान महामुनि तो भाग्य से ही पधारे हैं। अहो ! में कितना भाग्यशाली हूँ । ये तपस्वी सन्त मेरे आहार में से कुछ ले लें, तो मैं पवित्र हो जाऊँ ।" वह भक्तिपूर्वक महात्मा के सम्मुख आया और वन्दना कर के आहार दान करने लगा । उसकी भावना बड़ी उत्तम थी । उस समय वह मृग भी निकट खड़ा विचारने लगा -“धन्य है ये तपस्वी महात्मा ! इनकी संगत से मेरा भी उद्धार हो गया । इन महात्मा के प्रभाव से ही मेरे हृदय में धर्म का उदय हुआ । धन्य है इस दाता को जिसका आहार, तपस्वी महात्मा के मासखमण के पारण के काम में आया । हा, में कितना दुर्भागी हूँ कि पशुपन के कारण महात्मा को बाहार देने की भी याग्यता मुझ में नहीं है ।' महात्मा तो धर्मभावनायुक्त थे ही। उसी समय अधकटो हुई वृक्ष की डाली, वायु के वेग से टूट कर गिरी । तपस्वीराज श्रीबलदेवजी, वह सुधार और मृग, ये तीनों उसके नीचे दब कर आयु पूर्ण कर गये और तीनों ही 'ब्रह्म' न मक पाँचवें देवलोक के पद्मोत्तर विमान में देवपने उत्पन्न हुए । महात्मा बलदेवजी एक यो वर्ष संयम पाल कर स्वर्गगामी हुए ।
स्वर्गस्थ होने के पश्चात् बलदेवजी ने अवधिज्ञान से अपने भ्राता को वालुकाप्रभा में देखा, तो वे स्नेहवश वहाँ पहुँचे और उनसे मिले। वे उन्हें अपने स्थान ले जाना चाहते थे, परन्तु यह अशक्य बात थी । वे लौट गए।
पाण्डवों की मुक्ति
श्रीकृष्ण के पास से चल कर जशकुमार पाण्डवों के पास आये और उन्हें कौस्तुभमणि दे कर द्वारिका - दाह से ले कर समस्त कथा सुनाई। सुन कर पांचों भाई और द्रौपदी आदि शोकमग्न हो गए। वे सहोदर-बन्धु के समान हार्दिक एवं राजकीय शोक मनाते रहे । कुछ दिन बाद महात्मा धर्मघष अनमार अपने शिष्यवृंद के साथ वहाँ पधारे। उनके धर्मोपदेश से युधिष्ठिरादि पाँच पाण्डव विरक्त हुए। उन्होंने महारानी द्रौपदी से पूछ कर अपने पुत्र एवं द्रौपदी के आत्मज पाण्डुसेन कुमार का राज्याभिषेक कर के आचार्य श्रीधर्मघोषजी के समीप प्रव्रज्या स्वीकार कर ली और द्रोपदी भी महासती श्री सुव्रताची के पास दीक्षित हो गई । सती द्रौपदीबी ने ग्यारह अंगों का अभ्यास किया और विविध प्रकार का तप करती हुई बहुत वर्षो तक आराधना की । फिर अन्तिम आराधना स्वरूप ÷ ग्रंथकार ने जराकुमार को राज देना लिखा है औौर पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ने भी अपने 'जैनधर्म के मौलिक इतिहास' पृ. २३८ में ऐसा ही लिखा है । परन्तु ज्ञाता सूत्र अ. १६ में अपने पुत्र पाण्डुमेन को राज्य देना लिखा है ।
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