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________________ द्वारिका का विनाश मायकलमलककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककड़ " राजेन्द्र ! मेरा निश्चय अटल है। किन्तु मैं इतना संशोधन करता हूँ कि मेरे कोप से तुम दानों भ्राता जीवित बच सकोगे । इससे अधिक में कुछ नहीं कर सकंगा।" भवितव्यता को अमिट जान कर श्रीकृष्ण और बलदेवजी स्वस्थान लौटे। दूसरे दिन श्रीकृष्ण ने नगर में दिढोरा पिटवा कर घोषणा करवाई कि " द्वारिका का विनाश अवश्य होगा। इसलिये सभी नागरिकजन धर्म-साधना में तत्पर बने।" कुछ काल पश्चात् भगवान् अरिष्टनेमिजी महाराज स्वताचल के उच्चान में पधारे। भगवान् के धर्मोपदेश से अनेक राज कुमार और शनिया आदि ने संसार का त्याग कर प्रव्रज्या स्वीकार की। श्रीकृष्ण ने यूछा--" भगवन् ! द्वारिका का विनाश कब होगा?" भगवान् ने कहा--' आज से बारहवें वर्ष में द्वैपायन का जीवद्वारिका का विनाश करेगा।" __द्वारिका, उसकी समृद्धि और अपनी प्रभुता का विनाश जान कर श्रीकृष्ण अत्यन्त चितित एवं उदास हो गए, तब प्रभु ने उनके तीसरे भव में आगामी चौबीसी में तीर्थंकर होने का भविष्य सुना कर उन्हें आश्वस्त किया, तो वे अत्यन्त प्रसन्न हुए और सिंहनाद कियाx । भगवान ने श्री बलदेवजी के विषय में कहा.- "ये संयम की साधना कर के ब्रह्म-देवलोक में ऋद्धिशाली देव होंगे और वहां से च्यव कर उस समय मनुख्य-भव प्राप्त करेंगे--जब तुम भी मनुष्य होओगे और तुम्हारे तीर्थ में ही ये संयम की साधना कर के मुक्ति प्राप्त करेंगे। द्वारिका का विनाश कुमारों द्वारा पड़ी हुई मार की असह्य पीड़ा से तड़पता, चिल्लाता और उप्रतम वैर म.क्युक्त पर कर द्वैपायन भवनपत्ति की अग्निकुमार देव-निकाय में उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होने के बाद उसने उस पूर्वबद्ध वैर का स्मरण किया और तत्काल द्वारिका पर मैंडराने लहा। उसने देखा कि द्वारिका नगरी धर्म-भावना में रंगी हुई है और साधना-रत है। उपवास बले-तेले आदि तपस्या हो रही है, धर्मस्थान सामायिक-पौषधा दि साधना से उभर रहे हैं । अायम्बिल तप तो व्यापक रूप से हो रहे हैं। सारी द्वारिका धर्मपुरी बनी हुई हैं। उसने सोचा;-जब तक यहाँ धर्म की ज्योति जलती रहेगी, तब तक मेरा प्रकोप ४.६२६ पर इसका विशेष उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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