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________________ ६५२ तीर्थकर चरित्र प्राप्त कर लो, तब तो ठीक है। परन्तु यदि देवगति प्राप्त करो तो मुझे प्रतिबोध दे कर सन्मार्ग पर लगाने के लिये तुम्हें आना पड़ेगा। यदि यह वचन दो, तो मेरी आज्ञा है।" सिद्धार्थ ने वचन दिया और दीक्षित हो गया। छह महीने तक घोर तप और शुद्ध संयम का पालन कर के आय पूर्ण कर देत्र हुआ। कुमारों का उपद्रव और ऋषि का निदान शिलाकुण्डों में डाली हुई मदिरा, वहाँ के सुगन्धित पुष्पों तथा प्राकृतिक अनुकूलता पा कर विशेष सुगन्धित एवं मधुर बन गई । एक बार गरमी के दिनों में शाम्बकुमार का कोई सेवक उधर से निकला । उसे प्यास लग रही थी। वह उस मदिरा-कुण्ड के समीप पाया और मद्यपान करने लगा। सुगन्धित और अत्यन्त मधुर स्वाद से आकर्षित हो कर उसने आकण्ठ मदिरा पी और पास की चपक भर कर ले आया। वह मदिरा उसने शाम्बकुमार को पिलाई। कुमार उसके स्वाद पर मोहित हो गया। उसने सेवक से पूछा--"तु यह उत्तम मदिरा कहाँ से लाया ?" सेवक ने कादम्बरी गुफा के कुण्ड की बात कही। दूसरे दिन शाम्वकुमार, अपने बहुत-से बन्धु-बान्धवों को ले कर कादम्बरी गुफा के निकट आये और सब ने जी भर कर मदिरा पी । मद में मत्त बने हुए यादव-कुमार खेलते-कूदते और विविध प्रकार की क्रीड़ा करते हुए उस स्थान के समीप हो कर निकले, जहाँ द्वैपायन ऋषि ध्यान कर रहे थे। द्वैपायन को देखते ही राजकुमारों के हृदय में रोष उत्पन्न हुआ। शाम्म ने कहा--" यही दुष्ट देवपुरी के समान हमारी द्वारिका नगरी को नष्ट करने वाला है। इसे हम समाप्त ही कर दें। यह जीवित नहीं रहेगा, तो जलावेगा कैसे ?" ___ शाम्बकुमार के वचन सुनते ही सभी कुपार द्वैपायन को पीटने लगे। कोई लातचूंसे मारने लगा, तो कोई धोल-धप्पा और कोई पत्थर मारने लगा। द्वैपायन के साहम की सीमा समाप्त हो गई। उसे गम्भीर चोटें लगी थी। उसका जीवन टिकना असम्भव हो गया था। भवितव्यता भी वैसी ही थी। घायल बने हुए द्वैपायन ने अत्यन्त क्रुद्ध हो कर निदान किया-“मेरी साधना के बल से मैं निश्चय करता हूँ कि इन दुष्टों सहित सारी द्वारिका को जला कर राख का ढेर करने वाला बनूं।" कुमार-गोष्ठी, ऋषि को अधमरा कर के चली गई। श्रीकृष्ण को कुमारों के कुकृत्य की जानकारी हुई, तो वे अत्यन्त चिन्तित हुए और बलदेवजी के साथ द्वैपायन के पास आ कर विनम्रतापूर्वक क्षमा-याचना करने लगे । द्वैपायन ने कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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