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श्रीकृष्ण की वृद्ध पर अनुकम्पा
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मस्तक पर पाल बाँध कर बंगारे रख दिये । उसकी सहायता से मुनिवर ने क्षपक श्रेणी का आरोहण कर पानीकों को नष्ट किया और केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त किया। फिर बागों का निरोध कर के जलेशी अवस्था में मुक्ति प्राप्त की।"
"हे भगवन् ! वह मृत्यु के मुख में जाने योग्य पापात्मा कोन है, जो मेरे छोटे भाई को अकाल-मृत्यु का कारण बना "--श्रीकृष्ण ने भगवान् से क्षोभ एवं आतुरतापूर्वक पूछा।
"कृष्ण ! तुम उस पुरुष पर रोष मत करो । उस पुरुष ने तो गजसुकुमाल अनगार को सहायता दी है। उसके सहयोग से उन्होंने कल ही मुक्ति प्राप्त कर ली।"
“भगवन् ! उस पुरुष ने गजसुकुमाल अनगार को किस प्रकार सहायता दी"-- श्रीकृष्ण ने पूछा । वे समझना चाहते थे कि हत्यारा सहायक कैसे हो गया ?
“कृष्ण ! जिस प्रकार बाब यहाँ बाते हुए तुमने उस वृद्ध पुरुष की ईंटें, उसके घर में रखवा कर सहायता दी बोर उसका कार्य सफल कर दिया, उसी प्रकार उस पुरुष ने भी सबसुकुमाल बनगार के लाखों भवों के सञ्चित कर्मों की उदीरणा करवा कर बहुत-से कर्मों की निर्जरा करने में सहायता दी है"--भगवान् ने कहा।
"भगवन् ! में उस पुरुष को कैसे जान सकूँगा।"
"तुम यहाँ से नगर में लोटोमे, तब तुम्हें देख कर ही जो पुरुष धसका खा कर मर जाय, तो जान लेना कि यही पुरूष है वह ।"
श्रीकृष्ण ने भगवान् नेमिनाथ को वन्दन-नमस्कार किया और गजारूढ़ होकर लौटे।
उधर सोमिलबाहाण, मजसकमाल बनयार के मस्तक पर बंगारे रख कर भामा और अपने घर आ गया ! प्रातःकाल उसे विचार हुआ कि-'महाराजा श्रीकृष्णचन्दजी प्रातःकाल सूर्योदय होते ही भगवान् को वन्दना करने जावेंये । भगवान् सर्वज-सर्वदर्शी हैं उनसे कोई बात छिपी नहीं है । उन्होंने गजसुकुमाल मुनि के प्राणान्त की बात जान ही ली होगी। यदि उन्होंने श्रीकृष्ण से कह दिया, तो वे मुझे किस कुमृत्यु से मारेंगे बौर मेरी कमी दुर्दशा करेंमें"-इस प्रकार सोच कर वह भयभीत हो गया । इस भय से उबरने का एकमात्र उपाय उसने भाप कर कहीं लुप्त हो जाना ही समझा । वह घर से निकला और नपरी के बाहर जाने लगा। उधर से श्रीकृष्ण लौट रहे थे। उन्हें अपने सामने आते देखते
इसके पूर्व मनसुकुमाल कुमार को विवाहित लिखना भी अन्तगड सूत्र से बाधित है। वहाँ मूलपाठ में दीक्षोत्सव के लिए मेष-मुनि चरित्र का निर्देश करते हुए लिखा है कि-"जहा मेहे, णवरं महिलिया वन्जं जाव वडियकुले ।"
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