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________________ beer es esperasaap आज्ञा-पालन की सूचना दो ।" गजसुकुमाल कुमार की प्रव्रज्या और मुक्ति သား€®®®®®®heF आगे बढ़े। सेवक को सोमिल की ओर भेज कर, श्रीकृष्ण भगवान् को वन्दना करने के लिये ६२१ သာ गज सुकुमाल कुमार की प्रव्रज्या और मुक्ति श्रीकृष्ण, सहस्राम्रवन में पहुँचे । भगवान् की वन्दना कर के धर्मोपदेश सुना और अपने राजभवन में लौट आए । गजसुकुमाल कुमार पर भगवान् के उपदेश का गंभीर प्रभाव पड़ा । संसार की असारता समझ कर वे विरक्त हो गए और भगवान् को वन्दना कर के बोले ; -- "प्रभो ! आपके उपदेश से मैं विषय विकार और संसार-सम्बन्ध से विरक्त हो गया । में माता-पिता से अनुमति प्राप्त कर श्री चरणों में निर्ग्रथ प्रव्रज्या स्वीकार करना चाहता हूँ ।" भगवान् ने कहा--'' देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख हो वैसा करो, धर्म-साधना में विलम्ब मत करो ।" गजसुकुमालजी स्वस्थान आये और माता-पिता से बोले5- " मैने जिनेश्वर भगवन्त का उपदेश सुना है । में अब संसार की मोह-ममता तोड़ कर निर्ग्रथ प्रव्रज्या स्वीकार करना चाहता हूँ । मुझे आज्ञा दीजिये ।" 64 'वत्स ! तुम हमें अत्यन्त प्रिय हो । हम तुम्हारा वियोग सहन नहीं कर सकते । अभी तुम बालक हो । पहले तुम विवाह करो और कुल की वृद्धि करो । भुक्तभोगी होने के बाद प्रव्रज्या लेने का विचार करना ।" Jain Education International गजकुमाल कुमार की यह बात श्रीकृष्ण तक पहुँची । वे तत्काल उनके समीप आये और लघुभ्राता को हृदय से लगा कर गोदी में बिठाया, फिर पूछा- " 'वत्स ! तुम मेरे छोटे भाई हो और अत्यन्त प्रिय हो । तुम्हें मनुष्य सम्बन्धी सभी प्रकार के भोगोपभोग उपलब्ध हैं । इनका भोग करो। मैनें तुम्हारे ही लिये परम चरित्र में उन्हें म राजा की प्रभावती कुमारी के साथ विवाहित बताया है, इतना ही नहीं, इस सोमसुन्दरी के साथ भी उनका विवाह हो जाना लिखा है और यह भी लिखा है कि उनकी दोनों पत्नियाँ भी साथ ही दीक्षित हो गई थी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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