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________________ कककककक पाण्डवों को देश निकाला भी अपमान हुआ है- स्वामिन् ।' "पद्मनाभ ! तूने कुकृत्य किया है । मेरे ही समान महापुरुष कृष्ण का तेने अनिष्ट किया और अपना भी अनिष्ट किया। तू राज्य करने के योग्य नहीं है । चल निकल जा तू इस राज्य से ।" पद्मनाभ को निर्वासित कर के कपिल - वासुदेव ने उसके पुत्र का राज्याभिषेक किया । ६१३ पाण्डवों को देश निकाला इधर श्रीकृष्ण-वासुदेव लवण समुद्र को पार कर गंगा महानदी के निकट आये और पाण्डवों से कहा" जाओ तुम नौका से गंगा पार करो फिर नौका लौटा देना । मैं सुस्थित देव से मिल कर आऊँगा ।" से बोले all पाण्डवों ने एक नौका प्राप्त की और गंगा नदी को पार किया। फिर एक दूसरे 'श्रीकृष्ण, गंगा महानदी को अपनी भुजा से तैर कर पार पहुँचने में समर्थ है, या नहीं ?" उन्होंने श्रीकृष्ण के बल की परीक्षा करने के लिये नौका को एक ओर छुपा दिया और वहीं ठहर कर प्रतीक्षा करने लगे । उधर सुस्थित देव से मिल कर श्रीकृष्ण लौटे, तो उन्हें नौका कहीं दिखाई नहीं दी। फिर एक हाथ में अश्व और सारथी सहित रथ लिया और दूसरे हाथ से तैर कर नदी पार करने लगे, किन्तु मध्य में पहुँच कर वे थक गए । उस समय गंगा देवी प्रकट हुई और जल में स्थल बना दिया। श्रीकृष्ण ने वहाँ विश्राय किया और फिर साढ़े बासठ योजन प्रमाण महानदी को पार कर किनारे पर पहुँचे और पाण्डवों से बोले - " तुम महाबलवान् हो, जो महानदी के पार उतर गए, किन्तु पद्मनाभ को तुमने जानबूझ कर पराजित नहीं किया ।" पाण्डव बोले--" देवानुप्रिय ! हम नौका में बैठ कर पार पहुँचे । किन्तु आपका सामर्थ्य देखने के लिए हमने नौका नहीं भेजी ।' " Jain Education International पाण्डवों की बात सुन कर श्रीकृष्ण कोपायमान हुए और बोले-5--" जब तुम पद्मनाम से हार कर लौटे, तब मैने पद्मनाम उसकी सेना और नगर का विध्वंश किया और द्रौपदी को लाकर तुम्हें सौंपी। उस समय तुमने मेरा बल नहीं जाना और अब निश्चित हो कर परीक्षक बन गए ।" इतना कह कर लोहदण्ड से उनके पाँचों रथ पर प्रहार कर के चूर्ण कर दिया और उन पाँचों पाण्डव को देश से निर्वासित कर दिया । रथ चूर्ण करने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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