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रथ ने मि की राजमती पर आसक्ति
५६३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककत्व
उसके इन दुर्गुणों का पता लग्न के बाद लगता, तो तू जीवनभर दुःखी रहती। अरे ! उस निष्ठर के साथ तुम्हारा सम्बन्ध हुआ ही कौन-सा ? पिताजी ने केवल वचन से सम्बन्ध स्वीकार किया था। छोड़ो उस दंभी का विचार । संसार में अन्य अनेक अच्छे वर उपस्थित हैं । प्रद्युम्न, शाम्ब आदि एक-से-एक बढ़ कर योग्य वर मिल सकते हैं। उन सभी में से जो तुम्हें सर्वश्रेष्ठ लगे, उससे लग्न कर...........
बस, सखी ! आगे मत बोल । मेरे हृदय में जो एकबार प्रवेश कर गया, वही मेरा पति है । मैं अपने मन से तो कमी की उनकी हो चुकी । अब इस हृदय में से उन्हें हटा कर दूसरे को स्थान देने की बात ही में सुनना नहीं चाहती । मेरी दृष्टि में यह कुलटापन है । उत्तर कुल की नारी अपने हृदय में एक को ही स्थान देती है । बहिन ! मेरे वे प्राणेश्वर सामान्य मनुष्य नहीं हैं। अलौकिक महापुरुष हैं । उनके समान उत्तम पुरुष इस संसार में कोई है ही नहीं । यदि कोई दूसरा हो भी, तो मेरे लिए वह किस काम का ? मैने तो अपना प्रियतम उन्हें मान ही लिया है । यहाँ उन्होंने ठुकराई, तो क्या हुआ ? भोग की साथिन नहीं, तो वियोग की अथवा योग की साथिन रहूँगी । अब मैं भी उन्हीं के पथ पर चलूंगी । जब प्रियतम निर्मोही हैं तो मैं मोह कर के दुःखो क्यों बनूं और क्यों न मोहबचन तोड़ दूं ? बस, आज से न हर्ष न शोक । देखती हूं कि वे अब क्या करते हैं।"
राजमती स्वस्थ हुई । सखियों को विसर्जित किया और शांतिपूर्वक काल निर्गमन करने लगा । उधर श्री नेमिकुमार नित्य प्रातःकाल दान करने लगे। तीर्थंकर-परम्परा के अनुसार, इन्द्र के योग से उनका वर्षीदान चल रहा था। उनके माता-पिता 'श्री शिवादेवी और समुद्रविजयजी' पुत्र को विरक्ति और भावी वियोग का चिन्तन कर शोकाकूल रहने लगे। उनकी आँखों से बार-बार अश्र-कण गिरने लगे।
रथनेमि की राजमती पर आसक्ति
श्रानेमिनाथजी के बिना लग्न किये लौट जाने के कुछ काल पश्चात् उनका छोटा भाई रयनेमि, राजमती के सौन्दर्य पर मोहित हो गया। वह राजमती के पास बहुमूल्य भेटें ले कर थाने लगा । राजमती भी देवर का स्नेह जान कर मिलती और भेंट स्वीकार करती। राजमती के शिष्टाचार और भेंट स्वीकार का अर्थ रथनेमि ने अपने अनुकूल लगाया ! उसने सोचा कि राजमती भी मुझ पर आसक्त है । उसने एक दिन एकांत पा कर राजमती से कहा;
"सुभगे ! ज्येष्ठ-भ्राता ने तुम्हारे साथ घोर अन्याय किया है । वे रसहीन, अना
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