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________________ ५८२ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक तीर्थङ्कर चरित्र कर लो"--सत्यभामा बोली । "मुझे अपने योग्य साथिन मिलेगी, तो लग्न करने का विचार करूँगा। आपको संतोष रखना चाहिये"-कुमार बोले । "कबतक संतोष रखें ? अच्छा, हम आपको एक महीने का समय देती हैं । इस बीच आप अपने योग्य साथिन चुन लें । अन्यथा हमें कोई उपयुक्त पात्र खोजना पड़ेगा"महादेवी रुक्मिणी बोली। ___ "बसंत के बाद ग्रीष्मऋतु आई । उष्णता बढ़ने के साथ ही शीतलता की चाह भी बढ़ गई । सूर्य उदय के थोड़ी देर बाद ही गरमी बढ़ने लगी और लोगों के हाथों में वायु सञ्चालन के लिए पंखें हिलने लगे । अन्तःपुर और कुमार अरिष्टनेमि को अपने साथ ले कर श्रीकृष्ण रैवतगिरि की तलहटी के उद्यान में आये और सरोवर के शीतल जल में सभी के साथ क्रीड़ा करने लगे। अरिष्टनेमि भी अपने ज्येष्ठ-बन्धु और भोजाइयों की इच्छा के आधीन हो कर सरोवर के किनारे बैठ कर स्नान करने लगे। किन्तु भोजाइयों को यह स्वीकार नहीं था। उन्हें आज देवर को प्रसन्न कर के विवाह करने की स्वीकृति लेनी थी। श्रीकृष्ण के संकेत से उन्होंने कुमार को सरोवर में खिच लिया और चारों ओर से पानी की मार होने लगी। कुछ रानियाँ कृष्ण के साथ जल में ही घेरा बना कर चारों ओर से पानी की बोछारें करने लगी। कोई कृष्ण के कन्धे से झूम जाती, तो कोई गले में बाँहें डाल कर लटक जाती । थोड़ी देर बाद महारानी सत्यभामा, रुक्मिणी, पद्मावती आदि अरिष्टनेमि को घेर कर कमल-पुष्प युक्त जलवर्षा करने लगी और अनेक प्रकार के उपचार से मोहावेशित करने की चेष्टा करने लगी। किन्तु जिनका मोह उपशान्त है, उन पर क्या प्रभाव हो सकता है ? जलक्रीडा समाप्त कर बाहर निकले और वस्त्रादि बदल कर बैठने के बाद महादेवी सत्यभामा बोली;-- "देवरजी ! आपने अपने योग्य साथिन का चुनाव कर लिया होगा ? कहो, कौन है वह भाग्यशालिनी ?" ___ --"भाभी साहिबा ! मेरें तो यह बात ही समझ में नहीं आई कि बिना चाह के ब्याह कैसा ?" --"देवर भाई ! आप तो निरस हैं, किन्तु हम आपको अकेले नहीं रहने देंगी। आपके भाई के हजारों, भतीजी के भी अनेक और आप अकेले डोलते रहें । यह हमारे लिये लज्जा की बात है । हम आज आपको मना कर ही छोड़ेंगी"--सत्यभामा ने कहा। --"हां, आज हम सब आपको घेर कर बैठती हैं। आओ बहिनों ! देखें यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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