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तीर्थकर चरित्र နနနနနနန်း(၅၀နီ၀၀ ၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၃ခုနီ
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गदा उठाई, किन्तु अर्जुन बीच में आ कर लड़ने लगा । उत्तर श्रीकृष्ण को बन्धु की दुर्दशा देख कर भयंकर क्रोध चढ़ा। उन्होंने अपने पर प्रहार करने वाले उसके सभी पुत्रों को समाप्त कर दिया और जरासंध की ओर झपटे । जरासंध को अपने ६९ पुत्रों की मृत्यु का दूसरा महा आघात लगा । उसने सोचा--'यह बलभद्र तो मरने जैसा ही है । मेरे भीषण-प्रहार से यह बच नहीं सकता । अब अर्जुन से लड़ कर समय नष्ट करने से क्या लाभ ? मुझे अब कृष्ण को समाप्त करना है।' इस प्रकार विचार कर के वह कृष्ण से युद्ध करने को तत्पर हुआ । बलभद्र जी की दशा देख कर सेना भी हताश हो चुकी थीं। सेना पर जरासंध का आतंक छा गया था। सब के मन में यही आशंका व्याप्त हुई कि 'बलभद्रजी के समान कृष्णजी की भी दशा हो जायगी।' इसी प्रकार की चर्चा होने लगी। यह चर्चा इन्द्र के भेजे हुए मातली सारथी ने सुनी, तो उसने अरिष्टिनेमि कुमार से निवेदन किया;
"स्वामिन् ! यह समय आपके प्रभाव की अपेक्षा रखता है । यद्यपि आप इस युद्ध से निलिप्त एवं शान्त हैं, तथापि कुल की रक्षा के हेतु स्थिति को प्रभावित करने के लिये आपको कुछ करना चाहिए।"
मातली के निवेदन पर भ. अरिष्टनेमि ने अपना पौरन्दर शंख फूंक कर मेघ के समान गर्जना की । गगन-मण्डल में सर्वत्र व्याप्त धोर-गर्जना से शत्रु-सेना थर्रा गई। उसमें भय छा गया और यादवी-सेना उत्साहित हो गई । भ. अरिष्टनेमि की आज्ञा से उनका रथ रणभूमि में इधर-उधर चक्कर लगाने लगा और इन्द्रप्रदत्त धनुष से बाण-वर्षा कर के किसी के रथ की ध्वजा, किसी का धनुष, किसी का मुकुट और किसी का रथ तोड़ने लगे। शत्रु-पक्ष, प्रभु की ओर अस्त्र नहीं फेंक सका । प्रभु की ओर देखने में ही (प्रभु के प्रभाव से) उनकी आँखें चोंधियाने लगी। शत्रु-सेना स्तब्ध रह गई । उन्हें लगा कि जैसे महा-समुद्र में ज्वार उठा हो और हम सब को अपने में समा रहा हो । इस प्रकार की स्थिति बन चुकी । प्रभु के लिये जरासंध भी कोई विशेष नहीं था । वे उसे सरलतापूर्वक समाप्त कर सकते थे, किंतु प्रतिवासुदेव, वासुदेव के लिए ही वध्य होता है-ऐसी मर्यादा है। इसलिये उसकी उपेक्षा कर दी। प्रभु का रथ दोनों सेनाओं के मध्य घूमता रहा, इससे शत्रु-सेना को आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। इतने में यादव-पक्ष के वीरगण साहस प्राप्त कर पुनः युद्ध करने लगे। एक ओर पाण्डव-वीर, शेष बचे हुए कौरवों को मारने लगे, तो दूसरी ओर बलदेवजी स्वस्थ हो कर अपने हल रूपी शस्त्र से शत्रु-सेना का संहार करने लगे।
___ जरासंध, श्रीकृष्ण के समक्ष आ कर दहाड़ा;-- .
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