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________________ तीर्थङ्कर चरित्र ५६८ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक ध्वजा वाले हैं कुमार अरिष्टनेमि, चितकबरे वर्ण के घोड़ वाले रथ और कदलि चिन्ह वाली ध्वजा वाला हैं अक्रूर, तीतरवर्णी अश्व के रथ में सत्यकी, कुमुद रंग के घोड़े वाले रथ पर महानेमि है और तोते की चोंच जैसा वर्ण उग्रसेनजी के रथ के घोड़े का हैं । स्वर्ण समान वर्ण का घोड़ा और मृगांकित पताका जराकुमार के रथ की है, कम्बोज देश के अश्व वाले रथ पर श्लक्षणरोम का पुत्र सिंहल है । इस प्रकार मेरु, पद्मरथ, सारण, विदुरथ आदि का परिचय देते हुए सेना के मध्य में रहे हुए श्वेत-वर्ण के अश्व और गरुडांकित ध्वजा वाले कृष्ण हैं और उनकी दाहिनी ओर अरिष्ट वर्ण वाले और ताड़मंडित ध्वजाधारक रथ पर बलदेव हैं । यह समस्त सेना शत्रु-पक्ष की है।" अपने मन्त्री से विपक्षी महारथियों का परिचय पा कर जरासंध क्रोधित हुआ और अपने धनुष का आस्फालन किया, साथ ही अपना रथ कृष्ण-बलदेव के सामने ले आया। उधर जरासंध का पुत्र युवराज यवन, वसुदेव के पुत्र अक्रूरपर चढ़ आया। दोनों का भयंकर युद्ध हुआ। सारण ने कुशलतापूर्वक बाण-वर्षा कर के यवन के प्रहार का अवरोध किया, किन्तु यवन ने अपने मलय नामक गजराज को बढ़ा कर सारण के रथ को अश्व-सहित नष्ट कर डाला और ज्योंहि वह हाथी कुछ टेढ़ा हो कर अपने दत-प्रहार से मारने के लिए धावा किया, त्योंहि सारण ने उछल कर खड्ग का प्रहार कर के यवन का मस्तक काट कर मार डाला और हाथी की सूंड दाँत सहित काट डाली। सारण का अद्भुत पराक्रम देख कर यादवी-सेना हर्षोत्फुल्ल हो जयनाद करने लगी। अपने पुत्र युवराज का वध जान कर जरासंध क्रोधान्ध हो गया और यादवी-सेना का विनाश करने लगा । उसने बलभद्रजी के पुत्र--आनन्द शत्रुदमन, नन्दन, श्रीध्वज, ध्रुव, देवानन्द, चारुदत्त, पीठ, हरिसेन और नरदेव को--जो व्यूह के अग्रभाग पर थेमार डाला । इनके गिरते ही यादवी-सेना भागने लगी। उस समय शिशुपाल ने कृष्ण को संबोध कर कहा;-"कृष्ण ! यह गायों का गोकुल नहीं है । यह रणभूमि है । यहाँ तुम्हारा सारा घमण्ड चूर हो जायगा।" -"शिशुपाल ! अभी में रुक्मि के पुत्र से लड़ रहा हूँ। मैं नहीं चाहता कि तुझ-से लड़ कर तेरी मां को--जो मेरी मौसी है--रुलाऊँ, किन्तु तेरा काल ही आ गया होगा, इसी से तू मेरी ओर आया है।" कृष्ण के वचन सुन कर शिशुपाल कोधित हुआ । उसने धनुष का आस्फालन कर के कृष्ण पर बाणवर्षा प्रारंभ कर दी, किन्तु कृष्ण ने उसका धनुष, कवच और रथ भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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