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________________ सत्यभामा फिर छली गई ५५१ ၀၉၉၇၀၈၀၆၀၈၈ ၇၀၃၆၉၉၇၀၆၉၆၉၀၄၈၉၉ ခုန် भर रहा है, लकड़ी के सहारे चलता है, फिर भी पांव धुज रहे हैं और अहीरन भर-यौवना अनुपम सुन्दरी है । उसका मोह उद्दिप्त हुआ। उसने उन्हें बुलाया। दूध-दही का भाव पूछा और भवन के भीतर आने का कहा । वृद्ध अहीर बोला "तुम्हारे लेना हो, तो यहीं ले लो। मैं बूढ़ा, अपनी जवान पत्नी को भीतर नहीं भेजता । तुम जवान हो । तुम्हारा विश्वास नहीं है।" -"अरे बुड्ढे ! बैठ जा यहीं। यह अभी आती है। मैं तुम्हारा सारा गो-रस खरीद लूंगा और मूल्य भी इतना दूंगा कि तू प्रसन्न हो जायगा."-कहते हुए कुमार ने अहीरन का हाथ पकड़ा और अपने भवन में ले जाने लगा। इधर वृद्ध भी अहीरन का दूसरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खिंचने लगा। बस, खेल खतम हो गया। श्रीकृष्ण और जाम्बवती ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर और कुमार को दुत्कार कर स्तब्ध कर दिया। वह सम्भला और पलायन कर गया । श्रीकृष्ण ने महारानी से कहा "देखे अपने सुपुत्र के लक्षण ? और आप मेरी बात मानती ही नहीं थी ?" - "अभी बचपन गया नहीं है स्वामिन् ! जवानी और बचपन के प्रभाव से बुरे लक्षण आ गए हैं । मैं समझा दूंगी।" दूसरे दिन शाम्बकुमार को श्रीकृष्ण ने बुलवाया। वह हाथ में चाकू से. एक काष्ठ की खूटी बनाता हुआ आया । श्रीकृष्ण ने पूछा- “यह क्या बना रहे हो ?" -"जो मेरे साथ घटी, कल की घटना की बात करेगा, उसके मुंह में ठोकने के लिए यह खूटी बना रहा हूँ"-कुमार ने रोषपूर्वक कहा। श्रीकृष्ण को पुत्र की उदंडता पर रोष हो आया। उन्होंने उसे मगर से निकल जाने का आदेश दिया । कुमार को अपनी स्थिति का भान हुआ और आज्ञा पालन नहीं करने का परिणाम सोचा । उसे विवश होकर आज्ञा पालन करनी पड़ी। वह नगर त्याग के पूर्व प्रद्युम्नकुमार के पास पहुँचा और अपनी स्थिति कह सुनाई। प्रद्युम्न ने भ्रातृ-स्नेहवश शाम्ब को प्रज्ञप्ति-विद्या प्रदान की और सहायता का आश्वासन दे कर बिदा किया । सत्यभामा फिर छली गई शाम्बकुमार का विरह प्रद्युम्न को अखरा । उसने निर्वासन आदेश समाप्त कराने की युक्ति सोची। वह भीरु को सताने लगा और भीरु अपनी मां के सामने पुकार करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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