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श्रीकृष्ण और जाम्बवती भेदिये बने
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शाम्बकुमार, भीरुकुमार से बहुत जलता था । वह उसे तंग करता और हानि पहुँचाता रहता था । जुआ का खेल रचा कर उसका धन ले लेता और मार-पीट भी कर देता । एक दिन शाम्ब से पिट कर भीरु अपनी माता के पास रोता हुआ गया। महारानी सत्यभामा के तन-मन में आग लग गई । वह तत्काल श्रीकृष्ण के पास गई और बोली ; - 'यह देखों - अपने लाडले बेटे की दुष्टता । वह इसे फूटी आँख नहीं देखता और सदैव सताया करता है। इसके पास का धन भी छीन लेता है और मार-पीट भी करता है । आपने उसे सिर पर चढ़ा रखा है । वह आपका प्रिय पुत्र है । उसे आप हटकते ही नहीं और इस पर आपका स्नेह बिलकुल नहीं है । में यह दुःख कहाँ तक सहन करती रहूँ महारानी को तमतमाती आती हुई देख कर हो श्रीकृष्ण सहम गए थे और सोच रहे थे कि फिर कौन-सा विपत्ति आने वाली है। उन्होंने महारानी को मधुर वचन से संतुष्ट किया, भीरु के मस्तक पर वात्सल्यपूर्ण हाथ फिराया और शाम्ब को दण्ड देने का आश्वासन दे कर विसर्जित किया । रानियों की परस्पर की खटपट की सुनवाई और समाधान की झंझट भी श्रीकृष्ण को ही झेलनी पड़ती थी । उनका दायित्व था ही और वे बड़ी चतुराई से इस समस्या को सुलझाते थे । कभी-कभी मनोरञ्जन के लिए वे स्वयं भी एक दूसरी में टकराहट उत्पन्न कर के दूर से ही खेल देखते रहते थे ।
शास्त्रकुमार में चारित्रिक-दुर्बलता थी । श्रीकृष्ण इसे जानते | सत्यभामा के लौटते ही वे जाम्बवती के भवन में पहुंचे और शाम्बकुमार के दुराचार की बात बताई। महारानी बोली;
" स्वामिन् ! लोय तो द्वेषवश उसकी बुराई करते हैं । वास्तव में आपका पुत्र बहुत सीधा और सदाचारी है । आप ईर्षाओं की बात पर ध्यान मत दीजिये ।"
"प्रिये ! तुम्हें पुत्र स्नेह के कारण शाम्ब की बुराइये नहीं दिखाई देता । जिम प्रकार सिहनी को अपना बेटा, बड़ा दयालु और सीधासादा ही लगता है, परन्तु उसकी क्रूरता और आतंक तो वर के मृगादि पशु ही जानते हैं । तुम उसकी माता हो। तुम्हें उसकी बुराई दिखाई नहीं देतो, परन्तु जो मंने सुना है, वह सत्य है । यदि तुम्हारी इच्छा हो, तो मेरे साथ चलो । मैं तुम्हें तुम्हारे पुत्र की सुपुत्रता प्रत्यक्ष दिखा सकता हूँ
रूप परिवर्तन कर के श्रीकृष्ण तो वृद्ध अहीर बने और महारानी जाम्बवती एक सुन्दर और सलोनी अहीरन बनी । दोनों दूध-दही के बरतन मस्तक पर उठा कर बेचने के लिए चले । अहीरन को कर्णमधुर सुरीली ध्वनि सुन कर शबकुमार आकर्षित हुआ और अहीरन को देखते ही मुग्ध हो गया । उसने देखा - अहीर तो बूढ़ा खूसट है, श्वास
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