________________
नारदजी का हिंसक यज्ञ रुकवाना
इस प्रकार पुकार करते
रावण आगे बढ़ रहा था कि -- " अन्याय, अन्याय हुए नारदजी वहां आये और रावण से कहने लगे ;" उस राजपुर नगर में 'मरुत' नाम का राजा है । वह मिथ्यात्वियों से भरमाया हुआ, हिंसक यज्ञ कर रहा है । उस यज्ञ में होमने के लिए बहुत-से निरपराध पशु एकत्रित किये गये हैं । मैं आकाश मार्ग से उधर जा रहा था, तो मुझे चिल्लाते बिलबिलाते और आक्रन्द करते हुए पशुओं का समूह दिखाई दिया। मैं नीचे उतरा। यज्ञ का आयोजन देख कर मैंने राजा से पूछा -- " यह क्या हो रहा है ?"
--
11
राजा ने कहा--"यज्ञ कर रहा हूँ । ये याज्ञिक कहते हैं कि ऐसे यज्ञ से देवगण तृप्त होते हैं । इससे महान् धर्म होता है ।"
Jain Education International
मैंने कहा--" राजन् ! तुम महान् अधर्म कर रहे हो । ऐसे यज्ञ से धर्म नहीं, पाप होता है । धर्म करना हो, तो अपने आप में ही यज्ञ करो। अपने शरीर की वेदी बनाओ, आत्मा को यजमान करो, तपस्या रूपी अग्नि प्रज्वलित करो, ज्ञान का व्रत और कर्म की समिधा तैयार करो । फिर सत्यरूपी स्तंभ गाड़ कर क्रोधादि कषायरूपी पशुओं को उस स्तंभ से बांध दो । यह सब सामग्री तैयार करके ज्ञान दर्शन और चारित्र रूपी त्रिदेव ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की स्थापना करो और उनके सामने शुभयोग से एकाग्र हो कर साधना करो | वह साधना मोक्ष फल प्रदायक होगी । इस यज्ञ में समस्त प्राणियों की रक्षा ही दक्षिणा है । इस प्रकार का उत्तम यज्ञ ही तुम्हें करना चाहिए। क्या निरपराध पशुओं को मार कर प्राण लूटने से धर्म होता है ? और क्या देवों को रक्त और मांस जैसी घृणित वस्तु ही प्रिय है ? राजन् ! तुम भ्रम में हो। तुम्हें ऐसा घोर पाप नहीं करना चाहिए ।" मेरी उपरोक्त बात सुन कर ब्राह्मण क्रुद्ध हुए और डंडे ले कर मुझे पीटने लगे । मैं भाग कर इधर आया । आपके मिलने से मेरी रक्षा तो हो गई, किंतु आप वहां चल कर उन पशुओं को बचाइए ।"
नारदजी की बात सुन कर रावण, यज्ञ-स्थान पर आया । राजा ने रावण का सत्कार किया और सिंहासन पर बिठाया। रावण ने मरुत राजा को समझाया कि - "जिस प्रकार अपने शरीर को शस्त्र का घाव लगे, तो दुःख होता है, उसी प्रकार पशुओं को भी दुःख होता है । दूसरे प्राणियों को दुःख देने से मुक्ति तो नहीं मिलती, किन्तु असह्य दुःखों से भरपूर नरक मिलती है । तुम इस मिथ्यात्व को छोड़ो और वीतराग सर्वज्ञ अरिहन्त का कहा हुआ अहिंसा प्रधान धर्म की आराधना करो। इसी से महाफल की प्राप्ति होगी ।"
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org