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गो-वर्ग पर डाका और पाण्डव प्राकट्य
မျိုးဝင်းခိုင်မျာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာာ
ओर
राज वृषकर्पर की गर्वोक्ति, भीम सहन नहीं कर सकेगा और इससे वह जहाँ भी होगा प्रकट हो जायगा । दुर्योधन ने तत्काल एक योजना बनाई और कार्य प्रारम्भ किया। उसने विराट नगर के निकट के राजा सुशर्मा को सेना ले कर भेजा और विराट-राज के दक्षिण के वन में रहे हुए विशाल गोधन को लुटवाया । सुशर्मा ने बाण मार कर ग्वालों को भगा दिया और सभी गायों को अपने अधिकार में कर के ले चला । ग्वाले भागते हुए राजा के निकट आए और गो-वर्ग लूट जाने की पुकार मचाई । राजा तत्काल सेना ले कर चढ़-दौड़ा । राजा के साथ, अर्जुन के अतिरिक्त चारों पाण्डव अपने छुपाये हुए शस्त्र ले कर गये । अर्जुन अन्तःपुर में था और पुरुषत्वहीन के रूप में प्रसिद्ध था । इसलिये उसके जाने का अवसर ही नहीं था । दोनों की सेना में युद्ध छिड़ गया और बढ़ते-बढ़ते उग्रतम स्थिति पर पहुँचा । सुशर्मा की सेना के पाँव उखड़ गए। वह पीछे हटने लगी । अपनी सेना का साहस गिरता हुआ देख कर सुशर्मा आगे आया। जब उसकी भीषण बाण - वर्षा से विराट सेना आहत एवं क्षुब्ध हो कर भागने लगी, तब विराट नरेश सुशर्मा के सम्मुख आकर लड़ने लगे। दोनों वीर बड़ी देर तक लड़ते रहे, परन्तु किसी को भी विजयश्री प्राप्त नहीं हुई। उनके अस्त्र चुक गए, तो वे रथ से उतर कर मल्लयुद्ध करते लगे । अन्त में सुशर्मा ने विराट नरेश के मर्मस्थान में प्रहार कर उन्हें गिरा दिया और वन्दी बना कर अपने रथ में डाल दिया। विराट को बन्दी बना देख कर युधिष्ठिर ने भीम को आदेश दिया - " वत्स ! जाओ, विराट नरेश को मुक्त कराओ । हम इनके आश्रित हैं । हमारे होते इनका अनिष्ट नहीं होना चाहिए ।"
भीमसेन, नकुल और सहदेव के साथ शस्त्र ले कर सुशर्मा को ललकारते हुए आगे बढ़े। उसका प्रचण्ड रूप देखते ही सुशर्मा की विजयघोष करने वाली सेना डरी और इधरउधर हट गई । भीमसेन ने अपनी गदा का प्रथम प्रहार शत्रु के रथ पर दिया । रथ टूट कर बिखर गया । फिर सुशर्मा से लड़ कर थोड़ी ही देर में घायल कर दिया। सुशर्मा भीम से भयभीत हो कर भाग खड़ा हुआ। विराट नरेश को बन्धनमुक्त और अपने उपकार के पाश में आवद्ध कर के भीमसेन ने गो-वर्ग को लौटाया। विराट नरेश बन्दी बन कर सर्वथा निराश हो चुके थे । उन्हें बन्धन से मुक्त होने की आशा ही नहीं रही थी । वे मृत्यु की कामना कर रहे थे। ऐसे समय में अपने को मुक्त कराने वाले के प्रति उनका कितना आदरभाव होगा ? मुक्त होते ही उन्होंने अपना राज्य इन उपकारियों को भेंट करने की इच्छा व्यक्त की । किन्तु वे विराट नरेश के पुण्य प्रभाव का गुणगान करते हुए उनका विजयघोष करते रहे । सेना विजयोल्लास में उल्लसित हो कर लौटी ।
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