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कामान्ध कीचक वध
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ရာရာာာာာာာာာာာရိုးရာစားတဲ့
ककककक
मोहित कर के नाट्यगृह में भेजो। उस दुष्ट को करणी का फल मिल जायगा ।"
द्रौपदी संतुष्ट हो कर लौटी। दूसरे दिन द्रौपदी चाह कर कीचक के दृष्टिपथ में आई और उसके सामने स्मित एवं कटाक्षपूर्वक देखा । कीचक के लिए इतना ही पर्याप्त था । वह उत्साहपूर्वक द्रौपदी के पीछे चला । एकान्त पा कर द्रौपदी ने कहा - " यदि मुझे प्राप्त करना है तो आधी रात के समय नाट्यगृह में आओ । में वहाँ तुम्हें देख कर उठ जाउँगी और एकान्त स्थान पर चल देंगे ।" इतना कह कर द्रौपदी चल दी। उसके मुख से ये शब्द सरलता से नहीं निकल सके और न वह कृत्रिम प्रेम-प्रदर्शन ही कर सकी । वास्तव में सतियों के लिए प्रेम का बाह्य प्रदर्शन भी अत्यन्त कठिन होता है । कीचक को द्रौपदी की बात अमृत जैसी मधुर और स्वर्ग का राज्य पाने जैसी उल्लासोत्पादक लगी । वह उसी समय से मन के मोदक बनाता और मन-ही-मन प्रसन्न होता हुआ रात की तैयारी करने लगा । उसके लिए घड़ियाँ भी वर्ष के समान बितने लगी । आधी रात के समय कीचक नाट्यशाला में पहुँचा । भीम स्त्री वेश में वहाँ पहले से ही उपस्थित था । कीचक को देखते ही वह उठा ओर पूर्व ही देख कर निश्चित् किये हुए शून्य स्थान की ओर चला । क्रीचक उसके पीछे लगा । यथास्थान पहुँच कर भीम ने कीचक को बाहों में लिया और इस प्रकार भींचा कि उसकी हड्डियों तक का कचूमर बन गया और प्राण निकल गए । उसे वहीं पटक कर भीम पुनः वेश पलट कर अपने स्थान पर आ कर सो गया । प्रातःकाल कोचक का शव देख कर हाहाकार मच गया । अन्तःपुर में कुहराम छा गया । महारानी का वह भाई था। कीचक के सभी भाई क्रुद्ध हो कर घातक से वैर लेने को तत्पर हो गए । बहुत खोज करने पर भी घातक का पता नहीं लग सका । क्रुद्ध भाइयों ने कीचक की हत्या का कारण सैरंध्री को माना और उसे भाई के साथ जीवित जलाने के लिए पकड़ कर शव यात्रा के साथ श्मशान ले चले। द्रौपदी रोती-चिल्लाती रही और महाराजा देखते रहे, पर न्याय करने का साहस नहीं हुआ । जब भीमसेन ने यह सुना तो वह दौड़ता हुआ आया । शव यात्रा नगर से निकल कर वन में चल रही थी । भीमसेन ने आगे बढ़ कर रोक लगाई और दहाड़ते हुए पूछा - " इस स्त्री के सिर, हत्या प्रमाणित हो गई है क्या ?"
-" चल हट रास्ते से बड़ा आया है पूछने वाला " -- कीचक का भाई बोला । -" यदि अपराध प्रमाणित नहीं हुआ, तो इसे दण्ड नहीं दिया जा सकता । छोड़ों इसे " -- भीम ने रोषपूर्वक कहा- " एक निर्दोष और सती- महिला का शील भंग करने वाले अधमाधम को दण्ड देने के बदले तुम निरपराध महिला को उस लम्पट के साथ जीवित जलाने ले जा रहे हो ? इस धर्मराज में ऐसा घोर अन्याय कर के महाराजाधिराज
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