________________
५१४
तीर्थङ्कर चरित्र
प्राणनाथ !" पुकार कर रो रही है। यहाँ क्यों बैठा है ? ठण्ठी हवा चलने पर ये चारों सावचेत हो जावेंगे।"
भील की बात सुन कर युधिष्ठिर शांत हुए और सरोवर में से जल पी कर द्रौपदी को छुड़ाने चले, किंतु उसकी भी वही दशा हुई। पांचों भाई मूच्छित पड़े थे। कुछ समय के बाद पांचों सावधान हुए। उन्होंने देखा-द्रौपदो रत्नमाला युक्त कमल-पत्र में पानी ला-ला कर उन पर सिंचन कर रही थी और कुन्तीदेवी अपने आंचल के छोर से पवन चला रही थी। स्वस्थ हो कर युधिष्ठिर ने पूछा--
"प्रिये ! तुम्हारा अपहरण करने वाला दुष्ट कौन था और उससे तुम मुक्त कैसे हई ?"
"स्वामिन् ! आप पानी पीने पधारे, उसके बाद मैंने अपने अपहरणकर्ता और सेना को देखा ही नहीं। आश्चर्य है कि निमेषमात्र में वे कहाँ लोप हो गए। मैं वन में अकेली रह गई। वन-पशुओं की भयानक बोलियां सुनाई देने लगी। मैं भयभीत हो कर भटकने लगी।" इतने में मुझे एक वृद्ध भील दिखाई दिया, जो धनुष-बाण ले कर घूम रहा था। उसने कहा
___"वत्से ! तू इधर-उधर क्यों भटक रही है। वहाँ जा, तेरे पाँचों साथी मूच्छित पड़े हैं । चल मैं तुझे वहाँ पहुँचा दूं।"
"मैं उसके साथ हो गई और मातेश्वरी को भी लेती आई । यहाँ आ कर आप सब को मूच्छित देख कर मैं विलाप करने लगी। कुछ समय बाद एक भयंकर शब्द हुआ और उसके बाद एक पीले केश, पीली आँखें और श्यामवर्णी भयंकर राक्षसी आकाश में उड़ती हुई आई। उसकी भयंकर आकृति देख कर हमने निश्चय किया कि यही कृत्या-राक्षस होगी । कृत्या ने निकट आ कर आपको देखा और उसके साथ आई पिगला-राक्षसी से बोली-“अरे ! ये तो मर गए हैं। दुरात्मा ब्राह्मण ने इन मृतकों को मारने के लिए मुझे यहाँ भेजा ? तू देख ! ये वास्तव में मर गए हैं, या ढोंग कर के पड़े हैं"--इतना कह कर कृत्या हट गई । पिंगला आपको देखने के लिए निकट आने लगी, तब वृद्ध भील ने उस से कहा--"शव को स्पर्श करना तुम्हारे लिए अहितकारी होगा। ये तो वैसे ही मृतक दिखाई दे रहे हैं। इन्हें क्या देखना ? कुत्ते, शृगाल आदि नीच जाति के पशु ही शव को स्पर्श करते हैं, किन्तु सिंह कभी वैसे शव को नहीं खाते। यदि ये जीवित होते तो बड़े-बड़े वीर योद्धाओं से लड़ते और विजय प्राप्त करते।" ।
भील की बात सुन कर पिंगला लौट कर अपनी स्वामिनी कृत्या-राक्षसी के पास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org