________________
रावण का दिग्विजय
सेना के साथ रावण आगे बढ़ता रहा । मार्ग में रेवा नाम की महानदी थी। उसके आसपास का प्रदेश बड़ा सुहावना था । वनश्री और सलीला की मनोहरता देख कर रावण प्रसन्न हुआ। उसने वहीं पड़ाव डाल दिया और जलक्रीड़ा करने लगा। वह जलक्रीड़ा कर ही रहा था कि अकस्मात् नदी क. पानी बढ़ने लगा। उसमें बाढ़ आ गई और दोनों किनारे छोड़ कर बाढ़ का पानी सम-प्रदेश में प्रसर गया। सेना में हा-हाकार मच गया । किनारे के वृक्ष उखड़ कर बहने लगे। रावण असमय और अकस्मात् आई हुई बाढ़ देख कर आश्चर्य करने लगा। उसने सोचा--' यह किसी शत्रु मनुष्य, विद्याधर अथवा असुर की कुचेष्टा है ,';--यह सोच कर वह बाहर निकला । उसने अपने सेनापतियों को इस उपद्रव का कारण पूछा । एक ने कहा--
___देव ! यहाँ से थोड़ी दूर पर माहिष्मती नामकी नगरी है । एक हजार राजाओं द्वारा मेवित प्रबल पराक्रमी ऐसा सहस्रांशु महाराजा वहां का शासक है । उसने बांध, बांध कर रेवा के पानी को रोक लिया। जब वह अपने अन्तःपुर सहित जलक्रीड़ा महोत्सव मनाता है और उत्साहपूर्वक कराघात करता है, तो पानी उछलता है और छलक कर सेतु से बाहर निकलता है। इससे रेवा में जल-वृद्धि होती है और जब वह सेतु के द्वार खोल देता है, तो भयंकर बाढ़ आ जाती है । उसने आज सेतु का द्वार खोला है, इसीसे बाढ़ आई है । वह अपनी सेना और अन्तःपुर के साथ उत्सव मना रहा है"।
x आचार्यश्री लिखते है कि रावण, रेबा नदी में स्नान करके किनारे आया और मणिमय पट्ट पर रत्नमय जिनबिंब रख कर पूजा करने लगा। जब वह पूजा में मग्न था तभी रेवा में बाढ़ आई और रावण की की हुई पूजा को धो कर बहा ले गई । इस पर रावण क्रुद्ध हुआ। जब उसे मालूम हुआ कि सहस्रांशु और उसकी हजार रानियों के शरीर से दूषित हए जल से उसकी देव-पूजा दूषित हो गई, तो उसने इस महापाप का दंड देने के लिए सेना भेजी और यद्ध कराया । यह कल्पना रावण की जिनभक्ति के साथ द्धिहीनता विवेक-विकलता एवं भद्रता प्रकट करती है। किसी भी नदी में ऊपर कोई नहीं नहाता धोता मल-मूत्र नहीं करता- ऐसी धारणा गवण ने कैसे बना ली थी ? सहस्रांशु जिसमें स्नान कर रहा था, उसके कुछ दूर भैसे-गायें अदि भी पानी पीत और मल-मूत्र त्यागती रही होगी और मत्स्य वच्छादि तो उत में जन्मते मल-मूत्र त्यागते, भग करते, झुटन छोड़ते और मरते रहते हैं। उनसे पूजा दूषित नहीं हुई, किंतु राजा-रानी के नहाने से दूषित हो गई ? खुद रावण ने भी तो नदी में स्नान कर के जल को दुषित बनाया, 'जससे सारी नदी का जल दूषित हआ। इतना विचार भी रावण को नहीं हुआ। फिर इस दोष के परिहार का उपाय क्या युद्ध ही था ?
जो बाढ़ बडे-बड़े जहाजों, पत्थरों और पेड़ों की बहा कर ले गई, वह मात्र पूजा ही ले गई, मणिपट्ट और मूर्ति नहीं ले गई, इसका क्या कारण है ? ..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org