________________
कुकुकुकु
५०६
कु
कुतुब
तोर्थंकर चरित्र
Jain Education International
कुकु
बुद्ध हुआ । अन्त में विद्याधर ने घात लगा कर दुर्योधन और उसके प्रमुख सहायकों को बन्दी बना लिया |
दुर्योधन की पत्नी पाण्डवों की शरण में
दुर्योधन के बन्दी होते हो कौरव-शिविर में शोक छा गया। रानी भानुमती पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। शोक का भार उतरने पर रानी ने सोचा--" इस समय वीरशिरोमणि पाण्डव ही इस संकट से उबार सकते हैं । वे महान् हैं, धर्मात्मा हैं और निकट ही ठहरे हुए हैं । उनकी शरण में जाऊँ।" इस प्रकार सोच कर भानुमती चल दी पाण्डव-परिवार वंठा बातें कर रहा था । दूर से एक स्त्री को अपनी ओर आती देख कर विचार में पड़ गया - 'कोन स्त्री है यह। यहां क्यों आ रही है ? सभी की दृष्टि उसी और लग गई। भानुमती नीचा सिर किये हुए और मुंह ढके रोती हुई आई और कुन्तीदेवी के चरणों में प्रणाम कर के युधिष्ठिर के चरणों में झुकी और वहीं गिर गई। उन सब ने भानुमती को पहिचान लिया । कुन्ती और युधिष्ठिर बोले
38
'बहुरानी ! तुम इस दशा में यहाँ अकेली क्यों आई ? बोलो, शीघ्र बोलो ! तुम्हारी यह दशा किसने की ?”
हृदय का आवेग कम होने पर भानुमती बोली
- " आपके बन्धु को विद्याधरों ने बन्दी बना लिया । वे यही निकट के लिवन में हैं । उन्हें छुड़ाइये, शीघ्र छुड़ाइये । में हताश हो कर आपके पास यह भीख माँगने आई हूँ। ज्येष्ठ ! हमारे अपराधों को भूल कर उन्हें छुड़ाइये । इस संसार में केवल आप ही उन्हें मुक्त करा सकते हैं । आपके सिवाय और कोई बचाने वाला नहीं हैं ।"
- "हां, महारानीजी अपने पति को छुड़ाने धर्मराज के पास पधारी है । परन्तु उस समय कहाँ लुप्त हो गई थी, जब भरी सभा में मेरा घोर अपमान किया था मेरे बाल पकड़ कर घसीटता हुआ वह मानवरूपी दानव सभा में ले गया था और मुझे नंगी करने लगा था । तब तो तुम सब बहुत प्रसन्न हुए थे । अब किस मुंह से पधारी महारानीजी यहाँ " -- द्रौपदी ने व्यंग करते हुए कहा ।
"नहीं बन्धुवर ! आप भावुक नहीं बने। उस दुष्ट को मरने दें । उस नीच ने हमारी यह दशा कर डाली । अब भी वह इस वन में हमारा शत्रु बन कर हमें मिटाने
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org