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पाण्डवों को मारने दुर्योधन चला और बन्दी बना ५०५ রুক্তরুক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্ক ক্কক্কক্কক্কক্কন্তু
'के लिवन' था। वहां विद्याधर आते और सुखोपभोग करते थे। उस रमणीय केलिवन में विद्याधर नरेश चित्रांगद का एक भव्य भवन था, जो र.ज्य-प्रासादों से भी अत्यन्त आकर्षक और सभी प्रकार के सुख-साधनों से परिपूर्ण था। कुछ रक्षक उस भवन की रक्षा करने के लिए नियुक्त थे । दुर्योधन के अनुचरों ने उस रमणीय स्थान के विषय में निवेदन विया तो वह उस भवन को प्राप्त करने के लिए ललचाया। दर्योधन ने रक्षकों को मारपीट कर भगा दिया और भवन पर अधिकार जमा कर, रानी के साथ सुखोपभोग करने लगा।
उधर अर्जुन को गन्धमादन पर्वत पर पहुंचा कर, विद्याधर-नरेश इन्द्र तथा चित्रांगदादि लौटे और वन-विहार करते हुए स्व-स्थान के निकट जा रहे थे कि चित्रांगद को नारदजी का साक्षात्कार हुआ । प्रणाम और कुशलमंगलादि पृच्छा के बाद नारदजी ने पूछा;____ "वत्स ! तुम कहाँ गए थे?"
- "में अपने विद्यागुरु पाण्डवकुल-तिलक पूज्य अर्जुनजी को पहुंचाने गया था । वहाँ से लौट कर पा रहा हूँ।"
-"तुम्हारे गुरु पर संकट है । दुष्ट दुर्योधन उन्हें मारने के लिए सेना ले कर द्वैत वन में गया है । यदि तुम अपने गुरु के लिए सहायक बन सको, तो यह ऋण-मुक्त होने का शुभ अवसर है"--नारदजी ने कहा।
चित्रांगद ने नारदजी को प्रणाम कर अपने विद्याधर-साथियों और सेना के साथ दुर्योधन पर चढ़ाई कर दी। वे सभी विमानों में बैठ कर प्रस्थान कर रहे थे कि केलिवनप्रासाद के रक्षक भी आ पहुंचे और दुर्योधन द्वारा भवन पर बलपूर्वक अधिकार कर लेने की घटना कह सुनाई। इस विशेष घटना ने चित्रांगद की क्रोधाग्नि को विशेष भड़काया। उसके मित्र विचित्रांगद चित्रसेन बादि भी अपने परिबल सहित आकाशमार्ग से केलिवन पहुँचे और दुर्योधन को ललकारा । दुर्योधन की सेना शस्त्र ले कर विद्याधरों से भिड़ गई किन्तु थोड़ी ही देर में वह रणभूमि छोड़ कर भाग गई । फिर कई वीर पुरुष युद्ध-रत हुए और प्राणपण से लड़, किंतु विद्याधरों के मोहनास्त्र ने उन सब की शक्ति विलुप्त कर दी। मदमत्त की भाँति शस्त्र छोड़ कर रणभूमि में ही मूच्छिन्त हो कर गिर पड़े । इसके बाद वीरवर कर्ण आये। उधर विद्याधरपति भी शस्त्रसज्ज हो कर कर्ष से युद्ध करने बाये । दोनों में लम्बे समय तक लोमहर्षक युद्ध हुआ । अन्त में विद्याधरपति ने कर्ण के मर्मस्थान में ऐसा प्रहार किया कि उसे भागना पड़ा । उसे भागते देख कर दुर्योधन, शकुनि आदि युद्ध करने लगे। घोर
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