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मणिचूड़ की कथा अर्जुन अपनी विदेश-यात्रा में आगे बढ़ता हुआ एक विशाल वन-प्रदेश के मध्यभाग में पहुंच गया। जहाँ चारों और हिंसक-पशुओं का कोलाहल सुनाई दे रहा था। मनुष्य का तो वहां दूर-दूर तक मिलना ही कठिन था। अर्जुन वन की शोभा देखता हुआ चला ही जा रहा था कि उसके कानों में किसी स्त्री-पुरुष की बातचीत के शब्द पड़े। वे शब्द भी दुःख, संताप और वेदना से भरपूर लगे । अर्जुन शब्द की दिशा में आगे बढ़ा। उसने देखा--एक पुरुष आत्म-घात करने के लिए तत्पर है और स्त्री उसे रोक रही है। अर्जुन उनके पास गया और पूछा;
“भद्र ! तुम कौन हो? यह स्त्री कौन हैं ? लगता है कि तुम जीवन से निराश हो कर मरने का कायर जैसा कुकृत्य कर रहे हो । क्या दुःख है--तुम्हें ? यदि बताने योग्य हो, तो कहो में यथाशक्ति तुम्हारी सहायता करूंगा।"
अर्जुन की भव्य आकृति, निर्भयता एवं शौर्यता देख कर पुरुष आकर्षित हुआ। उसे लगा--'यह पुरुष मेरा दुःख दूर करेगा । दैव मेरे अनुकूल हुआ लगता है । इस वीर पुरुष के सामने अपना हृदय खोलना अनुचित नहीं है। उसने कहा--
"महानुभाव ! मैं हतभागी हूँ। मेरी घोर विपत्ति की कथा आपके हृदय को भी खेदित करेगी। किन्तु आप वीर क्षत्रिय हैं और परोपकार-परायण हैं । आपके दर्शन से ही मुझे विश्वास हो गया कि आप मेरा दुर्भाग्य पलटने में समर्थ होंगे। मुझ दुर्भागी की दुःखगाथा सुनिये । मैं रत्नपुर नगर के महाराज चन्द्रावतंश और महारानी कनकसुन्दरी का पुत्र हूँ। मणिचूड़ मेरा नाम है। प्रभावती मेरी बहिन का नाम है, जिसे हिरण्यपुर नरेश हेमांगद को ब्याही है । मेरा विवाह मेरे पिताजी ने चन्द्रपीड़ राजा की पुत्री चन्द्रानना के साथ किया । हम विद्याधर हैं ! मेरे पिता ने मुझे कई विद्याएँ सिखाई। पिताजी के स्वर्गवास के बाद मैं राजा बना और पिताजी की परम्परानुसार नीतिपूर्वक राज्य करने लगा। अचानक मेरा पितृव्य-भाई विद्याधरों की बड़ी सेना ले कर मुझपर चढ़ आया। मुझे तत्काल युद्ध करना पड़ा। उसके संगठित बल के आगे मेरी पराजय हुई । मैं राज्यभ्रष्ट हो कर वन में चला आया। यह मेरी रानी है । मैं राजा के उच्च पद से गिर कर एक रंक से भी हीन स्थिति में पहुँच गया हूँ। ऐसी हीनतम दशा में जीवित रहना मुझे नहीं सुहाता । मैं आत्म-घात करना चाहता हूँ। परन्तु यह मेरी रानी मुझे रोक रही है । इसका दुःख मैं जानता हूँ। परन्तु मैं इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को सहन नहीं कर सकता । इसीलिए मर रहा हूँ।"
“विद्याधरराज ! धैर्य धारण करो। इतने हताश मत बनो । मैं तुम्हारी सहायता
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