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कुमारों की कला - परीक्षा
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एकबार आचार्य सभी छात्रों के साथ गंगास्नान करने गये । वे स्वयं गंगा के मध्य में उतर कर नहाने लगे। इतने में एक मगर ने उनका पाँव पकड़ लिया । आचार्य चिल्लाये'छात्रों ! घड़ियाल ने मेरा पाँव पकड़ लिया है । छुड़ाओ, शीघ्रता करो ।" सभी छात्र घबड़ा गए । वे सोचने लगे--" गहरे जल में आचार्य को किस प्रकार बचाया जाय ?" उन्होंने बाण छोड़े, पर सब व्यर्थ । अन्त में आचार्य ने अर्जुन को पुकारा । अर्जुन जानता था कि आचार्य स्वयं ग्राह से मुक्त होने में समर्थ हैं, किन्तु परीक्षा के लिए ही वे अपने को मुक्त नहीं करा रहे हैं। उसने अनुमान से ही लक्ष्य साध कर बाण छोड़ा । बाण ठीक लक्ष्य पर लगा । ग्राह छिद गया और आचार्य मुक्त हो गए । आचार्य ने समझ लिया कि राधावेध के लिए एकमात्र अर्जुन ही उपयुक्त है ।
एकदिन सभी कुमारों की, सभी लोगों के समक्ष परीक्षा का आयोजन किया गया । एक विशाल मण्डप बनाया गया। जिसमें राजा आदि के लिये योग्य आसन लगाये गये । अन्य राजा, सामन्त, अधिकारी, प्रतिष्ठित नागरिक और दर्शकों के बैठने की उचित व्यवस्था की गईं । रानियों और अन्य महिला वर्ग के लिए पृथक् प्रबन्ध किया गया । सामने अस्त्र-शस्त्रादि साधन व्यवस्थित रूप से रखे गए । पाण्डु नरेश, भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र विदुर, आदि मण्डप में पहुँच कर आसनस्थ हुए। सभी दर्शक -दर्शिकाएं यथास्थान बैठे । मण्डप के सामने की स्वच्छ एवं समतल भूमि ही परीक्षा का स्थान था । द्रोणाचार्य अपने शिष्य-समूह के साथ उपस्थित हुए । राजाज्ञा से परीक्षा प्रारंभ हुई । छात्र अपनी-अपनी कला - निपुणता का प्रदर्शन करने लगे । कोई धनुष-बाण ले कर स्थिर लक्ष्य को वेधता तो कोई चल को, कोई ध्वनि का अनुसरण करके बाण फेंकता, कोई बाणों से आकाश को आच्छादित करता । द्वंद्वं-युद्ध, गदा-युद्ध, मुष्टि-युद्ध, मल्लयुद्ध आदि अनेक प्रकार का कला प्रदर्शन होने लगा । छात्रों की निपुणता देख कर दर्शक हर्षनाद एवं करस्फोट कर संतोष व्यक्त करने लगे । युधिष्ठिर रथारूढ़ हो कर युद्ध करने में सर्वोपरि सिद्ध हुआ। इसके बाद दुर्योधन और भीम का गदा-युद्ध हुआ । दोनों इस कला के पंडित थे। दोनों की चपलता और हस्तकौशल बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ा कि दर्शक चकित रह गए। दर्शकों का एक वर्ग भीम की प्रशंसा करता हुआ -- ' धन्य धन्य ' कह कर प्रोत्साहित करता, तो दूसरा वर्ग दुर्योधन की । भीम के प्रशंसक अधिक थे। उसकी प्रशंसा Sir घोष अत्यधिक गंभीर हो रहा था। यह देख कर दुर्योधन की ईर्षा बढ़ी । उसने क्रोधित हो कर भीम को मारने के लिए बलपूर्वक गदा प्रहार किया, परंतु भीम अविचल रहा । दर्शकगण दुर्योधन की दुष्टता देख कर क्षुब्ध हुए। दुर्योधन के गदा प्रहार का उत्तर भीम
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