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________________ ४२८ tosfasecto तीथंङ्कर चरित्र dadadadas အားးးးး လက်က်လက်အား " आपके समझाने से काम नहीं बनेगा । में स्वयं जा कर समझाऊँगा और उसका समाधान करूंगा । आप निश्चित रहिए ।" राजकुमार रथारूढ़ हो कर यमुना के स्वागत किया और आगमन का कारण पूछा। तीर पर पहुँचा । केवट ने राजकुमार का राजकुमार ने कहा "नाविकराज ! आपकी पुत्री के लिए महाराज ने स्वयं आपसे याचना की, फिर भी आपने स्वीकार नहीं की । यह अच्छा नहीं किया। महाराजा किसी से याचना नहीं करते । एक आप ही ऐसे सद्भागी हैं कि आपके सामने वे याचक बने । अब भी आप स्वीकार कर के अपनी भूल सुधार लें। मैं यही कहने आया हूँ ।" नाविक ने कहा - " महानुभाव ! मुझे भी इस बात का खेद हो रहा है कि मैंने ऐसे महायाचक को खाली हाथ लौटाया । किंतु आप भी सोचिये कि मैं उनकी माँग कैसे स्वीकार करता ? जब मेरी प्राणों से भी अत्यधिक प्रिय पुत्री का जीवन क्लेशित और दुःखमय होने की आशंका हो ? मुझे और कुछ नहीं चाहिए । में केवल यही चाहता हूँ कि इसके जीवन में कभी खेद या दुःख का अनुभव नहीं हो ।' "आपकी पुत्री को दुःख होगा ही कैसे ? यदि राजरानी भी दुःखी हो, तो फिर इतनी श्रेष्ठ सामग्री और वैभव वहाँ मिलेगा ? आप निश्चित रहिए। आपकी पुत्री को किसी की ओर से कष्ट नहीं होगा । में आपको इसका वचन देता हूँ ।" -- गांगेय ने विश्वास दिलाया । --"युवराज ! आपका कहन ठीक है । आप सत्पुरुष हैं, परंतु जब मेरी पुत्री के पुत्र होगा, तो वह राज्य का स्वामी नहीं हो सकेगा । राज्य के स्वामी आप होंगे और वह आपका सेवक होगा । महाराजाधिराज का पुत्र हो कर राज्य का सेवक बने, राजमहिषी का पुत्र राजा नहीं हो कर सेवक बने, तो उस समय उसे कितना दुःख होगा ? वह जीवनभर दुःख एवं क्लेश में ही घुलती रहेगी । यह आशंका रहते हुए भी मैं अपनी प्रिय पुत्री कैसे दे सकता हूँ" - नाविक ने भावी दुःख का शब्द-चित्र खिंच कर राजकुमार को प्रभावित किया । Jain Education International - " नायकजी ! आपकी आशंका निर्मूल है । आपकी पुत्री जब महारानी होगी, तो वे मेरी भी माता होगी। में उसको अपनी जनेता से भी अधिक मानूंगा। मेरे छोटा भाई हो, तो यह तो मेर लिए सौभाग्य की बात होगी । में बिना भाई के अभी एक शून्यता का अनुभव कर रहा हूँ। मेरी यह शून्यता दूर हो जाय, तो इससे मुझे आनन्द होगा । वह मेरा प्राणप्रिय बन्धु होगा । मुझसे उसे कष्ट होने या उसका अनदर होने की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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