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गिय का पिता से युद्ध और मिलन
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पाया । कुमार का एक धक्का भी वह सह नहीं सका। उसकी सहायता में एकसाथ तीनचार सुभट आये, परन्तु उन्हें भी मार खा कर भूमि का आश्रय लेना पड़ा। राजा खड़ाखड़ा यह दृश्य दख कर चकित हो रहा था। अपने सैनिकों की एक छोकरे द्वारा पराजय, राजा सहन नहीं कर सका। वह क्रुद्ध हो गया और स्वयं धनुष पर बाण चढ़ा कर कुमार पर प्रहार करने को उद्यत हुआ । कुमार भी सतर्क था। उसने सोचा-'यदि बिना किसी पर प्रहार किये ही शान्ति हो सकती हो, तो रक्तपात करने की आवश्यकता नहीं।' उसने राजा के रथ की ध्वजा गिरा दी। इससे राजा का क्रोध विशेष उभरा। प्रेम को क्रोध ने दबा दिया। राजा ने कुमार पर बाण छोड़ा। कुमार ने उसे काट कर रथ के सारथी पर सम्मोहक प्रहार किया, जिससे रथी मूच्छित हो कर गिर गया। अब राजा, कुमार पर भीषण बाण-वर्षा करने लगा। कुमार राजा के समस्त बाणों को निष्फल करने लगा। राजा का प्रत्यन निष्फल देख कर उसके सभी सुभटों ने आकर कुमार को घेर लिया और प्रत्येक सुभट प्रहार करने लगा। कुमार को चपलता बढ़ी और वह चारों ओर से अपनी रक्षा करता हुआ प्रहार करने लगा। थोड़े ही समय में उसने राजा के सैनिकों को घायल कर के एक ओर हटा दिया। अब राजा के कोप की सीमा नहीं रही। वह कुमार पर संहारक प्रहार करने के लिए सन्नद्ध हुआ। वह शर-सन्धान कर ही रहा था कि कुमार ने राजा के धनुष की प्रत्यञ्चा ही काट दी। राजा हताश हो कर व्याकुल हो गया । यह सब दृश्य गंगादेवी अपने आश्रम से देख रही थी। अपने पुत्र का अद्भूत पराक्रम देख कर वह प्रसन्न हुई। पिता से भी पुत्र सवाया जान कर उसे गौरवानुभूति हुई। क्षणभर बाद ही उसका हृदय दहल गया। क्रोध और अहंकार में कहीं कुछ अनिष्ट नहीं हो जाय'-वह संभली और तत्काल आगे बढ़ी और पुत्र को सम्बोध कर बोली;--
“पुत्र ! यह क्या ? तू किसके साथ युद्ध कर रहा है ? वत्स ! पिता, पूज्य होते हैं । तुम्हें इनके सम्मुख शस्त्र उठाना नहीं चाहिए । झुक कर प्रणाम करना चाहिए।"
इन वचनों ने गांगेय को स्तम्भित कर दिया। वह सोचने लगा;-क्या यह शिकारी मेरा पिता है ? उसने माता से पूछा-"आपकी बात मेरी समझ में नहीं आई। हम वनवासी हैं और ये कोई नरेश दिखाई देते हैं। यदि में इनका पुत्र हूँ और आप रानी हैं, तो हम वनवासी क्यों हैं ?"
"पुत्र ! में सत्य कहती हूँ। ये तुम्हारे पिता महाराजा शान्तनु हैं। तू इन्हीं का पुत्र है और मैं इनकी पत्नी हूँ। इनके शिकार के व्यसन के कारण ही में वनवासिनी बनी हँ ।”
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