________________
जरासंध की भीषण प्रतिज्ञा और बन्धु-युगल की मांग
३८१
इस प्रकार प्रतिज्ञा करने के बाद जीवयशा, मथुरा से निकल कर अपने पिता जरासंध के पास राजगृही आई। इधर समुद्रविजयजी आदि ने उग्रसेनजी को मथुरा के राज्य-सिंहासन पर स्थापित किया और उग्रसेनजी ने अपनी पुत्री सत्यभामा के लग्न कृष्ण के साथ कर दिए।
जरासंध की भीषण प्रतिज्ञा और बंधुयुगल की माँग
कंस की विधवा रानी जोवयशा, शोकाकुल हो कर मथुरा से निकली और अपने पिता जरासंध के पास आई। उसकी दुर्दशा देख कर जरासंध भी चिन्तित हुआ। उसने पुत्री को आश्वासन देते हुए शोक करने का कारण पूछा । जीवयशा ने अतिमुक्त श्रमण की भविष्यवाणी से लगाव र कंस-वध तक की सारी घटना कह सुनाई । जरासंध ने कहा
"कंस ने बड़ी भारी भूल की। उसे देवकी के गर्भ को मारने की क्या आवश्यकता थी? यदि वह एक देवकी को ही मार डालता, तो उसके गर्भ से उत्पन्न होने वाले पुत्र का आधार ही नष्ट हो जाता । विष-वेली को फूलने का अवकाश ही नहीं मिलता। जब क्षेत्र ही नहीं रहता, तो बीज उतान ही नहीं होता । अब जो होना था सो तो हो चुका। में तेरे उस शत्र का समूल नाश करूंगा। में प्रतिज्ञा करता हूँ कि कंस के शत्र उन यादवों को परिवार-सहित नष्ट कर के उनकी सभी स्त्रियों को रुलाऊँगा।"
जरासंध ने जीवयशा को धैर्य बँधा कर, अपने सामन्त राजा सोमक को बुलाया और उसे अपना अभिप्र य समझा कर समुद्रविजयजी के पास भेजा। सोमक ने राजा समुद्रविजयजी से कहा--
-"महाराजाधिराज जरासंध आपके स्वामी हैं । आपके पुत्रों ने उनके जामाता कंस को मार डाला। वे उनके अपराधी हैं। आप उन दोनों पुत्रों को उन की सेवा में उपस्थित करने के लिए हमें देदेवें । वे उन्हें उचित दण्ड देंगे । आपको इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये । वैसे वसुदेव ने देवकी का सातवाँ बालक कंस को दिया ही था। इस लिए कृष्ण उनका ही है । आपने उनके मनुष्य को छुपा कर रखने का अपराध किया है। आप अब भी इन दोनों भाइयों को महाराजाधिराज के समर्पित कर देंगे, तो आपके राज्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं होगा। अन्यथा आप भी दण्डित होंगे और आपको राज्य-भ्रष्ट कर दिया जायगा।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org