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मल्लों का मर्दन ओर कंस का हनन
दोनों भाई खड़े हैं - उन हाथियों के पास उनके हाथों में वे रक्त-सने श्वेत दण्ड जैसे क्या हैं ? दाँत होंगे — हाथी के । देखो, वे पलट कर अपनी ही ओर आ रहे हैं ।"
मल्लों का मर्दन और कंस का हनन
में
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दोनों भ्राता गोप- साथियों के साथ वहाँ से चल कर मल्ल युद्ध के अखाड़े में आये । अखाड़े एक बड़ा सा मंच था, जिस पर कंस उच्चासन पर बैठा था और निकट ही समुद्रविजयजी आदि दशार्ह, अन्य राजा और सामन्त बैठे थे । प्रतिष्ठित नागरिक भी मंच पर यथास्थान बैठे थे । अन्य दर्शकों को जहाँ स्थान मिला वहाँ बैठे या खड़े रहे। दोनों भाई अपने गोपसाथियों के साथ मंत्र ओर आये । मंच पर स्थान खाली नहीं था । उन्होंने बैठे हुए लोगों को उठाया और अपने साथियों के साथ बैठ गए। बलरामजी ने कृष्ण को संकेत से अपने शत्रु कंस को बताया और साथ ही समुद्रविजयादि बाबा - काकाओं और पिता को दिखाया । वहाँ उपस्थित राजाओं, सामन्तों और दर्शकों की दृष्टि उस प्रभावशाली बन्धुयुगल पर टिक गई। वे सोचने लगे-- “ ये देव के समान शोभायमान युवक कौन हैं ?" कंस की आज्ञा से मल्ल-युद्ध प्रारंभ हुआ । अनेक जोड़े अखाड़े में उतर कर लड़े । अन्त में कंस द्वारा प्रेरित चाणूर मल्ल, मेघ के समान गर्जना करता हुआ अखाड़े में आया । विशाल एवं गठित शरीर, वज्र जैसे दृढ़ अंगोपांग और विस्फारित रक्त आँखें । वह उछलता कूदता और करस्फोट करता हुआ गरजा ;
" जो कोई अपने को वीर योद्धा या अजेय मानता हो और जिसमें अपनी शक्ति का अभिमान हो, वह अखाड़े में उतर कर मेरे सामने आवे और मेरी मल्ल-युद्ध की साध पूरी करे।" चाणूर की चुनौती सुनते ही कृष्ण उठे। उन्हें चाणूर की गर्वोक्ति सहन नहीं हुई । वे उसके सम्मुख उपस्थित हुए और करस्फोट करते हुए चाणूर से बोले ; -
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गया है कि किसी को कुछ समझता ही
'तुझे अपने बल का इतना घमण्ड हो नहीं ? आ, मैं तेरी साध पूरी करता हूँ ।"
दर्शक एक-दूसरे से कहने लगे - " कहाँ कसरत से शरीर को वज्रवत् कठोर बनाया हुआ, यह किशोर, जिसे न मल्ल-विद्या आती है इस दैत्य के सामने बड़े-बड़े योद्धा भी नहीं लिया ? यह क्रूर राक्षस इसे अभी मसल कर मिटा देगा ।"
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यह दुर्धर मल्ल, खूब खाया पिया और राक्षस-सा प्रचण्ड और क्रूर और कहाँ और न शरीर ही उतना दृढ़ एवं कठोर है ! आ सकते, तो इस बालक ने कैसे साहस कर
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