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________________ तीर्थङ्कर चरित्र रानी ने दमयंती को स्नान करवा कर राजकुमारी के योग्य वस्त्राभूषण पहिनाये और राजा के समझ ले गई । उस समय संध्या का अन्धकार उस कक्ष में फैल रहा था । दीपक प्रकटाने की तैयारी थी । दमयंती के पहुँचते ही भवन कक्ष प्रकाशित हो गया । राजा आश्चर्य करने लगा--' यह बिना दीपक के प्रकाश कैसा ?' दमयंती से मिल कर राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ । राजा और रानी ने अपने पास बिठा कर दमयंती से राज्य-त्याग और पति वियोग का कारण पूछा। दमयंती ने रोते हुए सारी घटना कह सुनाई ! राजारानी ने दमयंती को आश्वस्त किया । ये बातें हो ही रही थी कि एक देव वहां उपस्थित हुआ और हाथ जोड़ कर दमयंती से कहने लगा; "भद्रे ! में पिंगल चोर का जीव हूँ । राजा ने मुझे प्राण दण्ड दिया था, किंतु आपने मुझे बचाया और प्रेरणा दे कर संयमी बनाया। मैं विचरता हुआ तापसपुर के श्मशान में ध्यानस्थ खड़ा था। वायु के जोर से चिता की आग मेरी और बढ़ी और घासफूस जलाती हुई मेरे शरीर को भी जलाने लगी। में ध्यान में दृढ़ रह कर, समभावपूर्वक मृत्यु पा कर देव हुआ और दैविक- सुख प्राप्त कर सका । आपके उपकार का स्मरण कर, मैं आपके दर्शनार्थ आया हूँ । देवी! आपकी विजय हो, आप सुखी रहें आपकी मनोकामना पूर्ण हो' - देव प्रणाम कर के अन्तर्धान हो गया। इस घटना ने राजा ऋतुपर्ण को भी प्रभावित किया और उन्होंने भी देवी दमयंती से आर्हत्-धर्म अंगीकार किया । दमयंती पीहर में ३४४ ―― हरिमित्र ने राजा-रानी से निवेदन कर दमयंती को ले जाने की आज्ञा माँगी । माता-पिता को चिन्ता का विचार कर, राजा ने वैदर्भी को बिदा करना उचित समझा और रथ वाहन और सेना तथा मार्ग के भोजनादि की पूरी व्यवस्था के साथ बिदा कर दिया । एक शीघ्र गति दूत, आगे समाचार देने के लिए भी भेज दिया । दमयंती का आग - मन सुन कर, राजा-रानी को प्रसन्नता हुई। वे उसी दिन वाहनारूढ़ हो कर दमयंती की ओर चले । माता-पिता को आते हुए देख कर, दमयंती वाहन से नीचे उतरी और पिता की ओर दौड़ी | भीम राजा भी अश्व से नीचे कूद कर पुत्री की ओर दौड़े और अंक में भर लिया । पिता-पुत्री की आंखों में से आँसू बहने लगे। माता-पुत्री के मिलन ने तो वन में ही करुणा रस का झरणा बहा दिया। वे ढ़ाड़े मार कर रोने लगी । शोकावेग कम होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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