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________________ जुआ खेल कर राज्य हारे x वन-गमन ३२५ ओर की सेना युद्ध-क्षेत्र में आमने-सामने जम गई और बाण-वर्षा करती हुई युद्ध करने लगी। सैनिकों और हाथी-घोड़ादि का व्यर्थ संहार रोकने के लिए नल ने कदम्ब को दद्व युद्ध के लिए प्रेरित किया। सेना का युद्ध रुक गया और दोनों वीर विभिन्न रीति से लड़ने लगे। कदम्ब भी योद्धा था, परंतु नल के समान नहीं। भिन्न-भिन्न प्रकार के दांवपेंच लगा कर उसने देख लिया कि नल राजा से पार पाना कठिन है । वह अवसर देख कर खिसक गया और एकान्त में जा कर सर्वत्यागी संत हो, ध्यानारूढ़ हो गया। नल नरेश, कदम्ब मुनि के पास पहुंचे। उन्होंने कहा;-"युद्ध में तो में आप से विजयी रहा, किंतु धर्म-क्षेत्र में मैं आप की समानता नहीं कर सकता । हे मुनिराज ! आप क्षमा-श्रमण बन कर आभ्यन्तर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें । मैं आपको वन्दना करता हूँ।" । कदम्ब-पुत्र जयशक्ति का राज्याभिषेक कर, नल नरेश राजधानी लौटे। उनका शासन निराबाध चलता रहा । जुआ खेल कर राज्य हारे+वन-गमन नल नरेश का भाई कुबर, कुलांगार था। राज्य-लोभ ने उसे छिद्रान्वेषी बना दिया। वह नल के पतन के निमित्त की ताक में रहा । नल नरेश, न्याय-नीति और सदाचार से युक्त थे। परंतु वे मृतक्रीड़ा के व्यसनी थे । जुआ खेलने में उनकी विशेष रुचि थी। बड़े-बड़े दांव लगा कर वे पाशा फेंकते थे। कुबर ने नल से राज्य लेने का यही मार्ग उचित समझा। वह नल के साथ जुआ खेलने लगा। कभी नल की जीत होती, तो कभी कुबर की। नल द्युत-क्रीड़ा में प्रवीण था, किंतु दुर्भाग्य का जब उदय होता है, तो बड़े-बड़े निष्णात भी चूक जाते हैं । नल की पराजय का दौर चला । वह दांव पर गाँव, नगर और मण्डल लगा कर हारने लगा और ज्यों-ज्यों हारता गया, त्यों-त्यों अधिक दाँव लगाता गया। उसकी हार से हितेषीजनों को चिन्ता होने लगी। वे ' हा हा कार' करने लगे। दवदन्ती ने भी नल से प्रार्थना की-'स्वामी ! अब रुक जाइए। नहीं, नहीं. अब मत खेलिए-यह विनाशक खेल । यह खेल हमारा शत्रु बन रहा है। हम सबको विपत्ति में डाल रहा है । नाथ ! जरा ठहरो और सोचो, अब तक कितना खो चुके । जो बचा है, उसे ही रहने दो। यदि आपको अपने अनुज बान्धव को राज्य देना ही है, तो यों ही दे दो, जो 'दान' तो कहा जायगा । हार से तो दान अच्छा ही है, परन्तु इस पापी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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