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हंस - कनकवती सम्वाद
कनकवती का शरीर विद्युत्-प्रभा के समान देदीप्यमान, आकर्षक, मोहक यावत् सुन्दर था । वह देवलोक से च्यव कर आई थी । पूर्वभव में वह महाऋद्धिशाली कुबेर देव की अग्रमहिषी थी । यहाँ उसकी देह कांति सर्वोत्तम एवं सर्वाकर्षक थी । देवांगना पर अत्यंत प्रीति होने के कारण जन्म समय कुबेर ने कनक- वृष्टि की थी। इसी निमित्त राजा ने पुत्री का नाम ' कनकवती' रखा। कनकवती क्रमशः विकसित और सभी कलाओं में प्रवीण हो यौवनय को प्राप्त हुई । महाराजा ने पुत्री के योग्य वर की बहुत खोज की । अन्त में निराश हो कर स्वयंवर समारोह का आयोजन किया ।
किसी समय राजकुमारी अपने प्रमोद-कक्ष में बैठी थी कि अकस्मात् एक राजहंस आ कर खिड़की पर बैठ गया । हंस अत्यंत श्वेत वर्ण का सुन्दर था। उसकी आँखें, चोंच और चरण लाल थे । उसके कंठ में सोने की माला थी । उसकी बोली बड़ी मधुर एवं सुहावनी थी । हंस को देख कर कुमारी समझ गई कि यह हंस, किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा पालित है । उसी ने इसे आभूषण पहिनाये हैं ।' कुमारी ने चतुराई से हंस को पकड़ लिया । हंस के रूप और कोमलता पर मोहित हो कर राजकुमारी ने अपनी सखी को हंस को बन्द करने के लिए पिंजरा लाने का आदेश दिया। यह सुन कर हंस बोला;
" राजकुमारी ! तू समझदार एवं चतुर है । मुझे पिञ्जरे में बन्द करने से तुझे कोई लाभ नहीं होगा । मुझे खुला ही रहने दे। मैं तेरा हितैषी हूँ और तुझे एक प्रियजन का शुभ सन्देश देने आया हूँ ?"
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हंस की मानुषी - वाणी सुन कर कुमारी चकित हो कर बोली; -
"
'हंस ! तू विलक्षण जीव है। कौन है मेरा वह नियोजन, जिसका तू मुझ शुभ सन्देश देने आया है ?"
"सुन्दरी ! विद्याधर-पति कोशल नरेश की सुकोशला पुत्री के युवक पति, यादवकुल-तिलक, कुमार वसुदेव ही वे श्रेष्ठ पुरुष रत्न हैं, जो रूप, गुण और कलाओं में सर्वोत्तम हैं । उनके जैसा श्रेष्ठ पुरुष अन्य कोई नहीं है । जिस प्रकार तू स्त्रियों में श्रेष्ठ रत्न है, वंसे वसुदेव भी अनुपम पुरुष-रत्न हैं । मैंने तुम दोनों की जोड़ी उपयुक्त समझ कर, वसुदेव से तुम्हारी प्रशंसा की और उनके मन में तुम्हारे प्रति अनुराग उत्पन्न किया । वे तुम्हारे स्वयंवर में आवेंगे । स्वयंवर-सभा में आये हुए अन्य प्रत्याशी राजाओं में उनका रूप एवं तेज विशिष्ट होगा । जिस प्रकार तारा-मण्डल में चन्द्रमा श्रेष्ठ है उसी प्रकार उस सभा में वसुदेव श्रेष्ठ पुरुष होंगे | तू उन्हें पहिचान कर उन्हीं का वरण करना । बस अब मुझे छोड़ दे । में तेरे हित में कार्य करूँगा *
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