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________________ तीर्थकर चरित्र उत्तर गया। वह अत्यंत थक कर व्याकुल हो गया और सीधा हो कर खड़ा रह गया। महापद्म के अद्भुत पराक्रम को देख कर सभी लोग आश्चर्य करते हुए प्रशंसा करने लगे। नरेश की प्रसन्नता का पार नहीं था। उसने महापद्म का सम्मान किया और योग्य तथा उत्तम कुल-सम्पन्न समझ कर अपनी सौ कन्याओं का उसके साथ लग्न कर दिया । अब महापद्म सुखपूर्वक वहीं रहने लगा, किंतु उसके मन में आश्रमवासिनी राजकुमारी मदनावली का स्मरण रह-रह कर आता रहता था। - राजकुमार सुखशय्या में सोया हुआ था कि उसके पास एक विद्याधरी आई और उसका हरण करने लगी। महापद्म जाग गया। उसने संहरण का कारण पूछा । विद्याधरी ने कहा; "वंताढ्य पर्वत पर सुरोदय नगर है। इन्द्रधनु वहाँ का विद्याधर राजा है । उसके 'जयच चन्द्रा' नामकी पुत्री है। योग्य वर नहीं मिलने के कारण जयचन्द्रा पुरुष-द्रषिनी हो गई । मैने भरतक्षेत्र के सभी राजाओं के चित्र ले जा कर उसे बताये, किंतु उसे एक भी पसन्द नहीं आया। परन्तु आपका चित्रपट देखते ही वह मग्ध हो गई। आपका मिलना दुर्लभ समझ कर वह चिन्ता में जल रही है। उसकी प्रतिज्ञा है कि यदि आपका योग नहीं मिले, तो वह प्राण त्याग देगी। जयचन्द्रा की बात मैने उसके माता-पिता से कही। उनकी आज्ञा से आपको लेने के लिए मैं यहां आई हूँ। अब आप शीघ्र चल कर उस परम सुन्दरी राजकुमारी को स्वीकार करें।" __महापद्म विद्याधरी के साथ वैताढ्य पर्वत पर आया और जयचन्द्रा का पाणिग्रहण किया। यह समाचार सुन कर जयचन्द्रा के मामा के पुत्र गंगाधर और महीधर उत्तेजित हो गए । वे दोनों जयचन्द्रा को चाहते थे। उनका महापद्म के साथ युद्ध हुआ। वे दोनों हार कर पलायन कर गए । कालान्तर में महापद्म के यहाँ चक्र-रत्नादि प्रकट हुए । छह खंड की साधना की और आश्रमवासिनी राजकुमारी मदनावली का पाणिग्रहण कर सुखमय भोग-जीवन व्यतीत करने लगा। नमुचि का उपद्रव और विष्णुकुमार का प्रकोप अन्यदा भ. मुनिसुव्रत स्वामी के शिष्य श्री सुव्रताचार्य हस्तिनापुर पधारे । राजा पद्मोत्तर और राज्यपरिवार ने उपदेश सुना और वैराग्य पा कर पद्मोत्तर नरेश प्रवजित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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