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चक्रवर्ती महापद्म
राजकुमारी को मोहित देख कर उसकी माता ने कहा-- 'बेटी ! यह क्या ? इतनी चपलता ? भविष्यवेत्ता ने तुझे चक्रवर्ती महाराजा की रानी होने की बात कही थी, वह भूल गई ? जैसे-तैसे पर आसक्त होना राजकुमारी के लिए उचित है क्या ?"
आश्रम के आचार्य ने सोचा--युवक-युवती का साथ ही आश्रम में रहना निरापद नहीं है । उसने महापद्म से कहा ;--
__ "वत्स ! अब तुम्हें पुरुषार्थ कर अपने भाग्य को प्रकट करना चाहिए । तुम्हारा कल्याण हो।"
महापद्म ने सोचा--" रानी ने अपनी पुत्री का पति चक्रवर्ती नरेश होने का कहा, सो चक्रवर्ती तो मैं ही बनूंगा । मेरे सिवाय दूसरा कोई चक्रवर्ती नहीं होगा। इसलिए इसका पति तो मैं ही हूँगा । अब मुझे आचार्य की सलाह के अनुसार चल कर भाग्य के लिए अनुकूलता करनी चाहिए।"--यह सोच कर वह वहाँ से चल दिया और घूमता-फिरता •सिन्धसदन' नामक नगर में आया। उस समय उस नगर में वसंतोत्सव मनाया जा रहा था । इसलिए नगर की स्त्रिय, नगर के बाहर उद्यान में एकत्रित हो कर विविध प्रकार की क्रीड़ा करती हुई और कामदेव की आराधना करती हुई रंगराग में रत हो रही थी। अचानक गजशाला का एक हाथी मदोन्मत्त हो गया और बन्धन तुड़ा कर चल दिया । वह उपद्रव मचाता हुआ, उस उत्सव स्थल में आ पहुँचा । उसे वश में करने के लिये महावतों द्वारा किये हुए सभी उपाय व्यर्थ हो गए । काल के समान उपद्रव मचाते हुए हाथी को अपनी ओर आता हुआ देख कर सभी महिलाएँ भयभीत हो कर स्तंभित हो गई। वे इतनी दिग्मूढ़ हो गई कि उनसे हिलना-चलना भी कठिन हो गया । वे जोर-जोर से चिल्लाने लगी। राजकुमार महापद्म भी उस उत्सव को देखने लिए आ गया था। गजराज के उपद्रव से ललनाओं को मुक्त करने के लिए वह गजेन्द्र की ओर झपटा और ललकार कर उसके सामने अपना बस्त्र फेंका। हाथी ने वस्त्र को ही मनुष्य समझ कर मर्दन करने लगा। उत्सव में उपस्थित सभी नागरिक और महासेन नरेश, हाथी के उपद्रव को देख रहे थे। उन्होंने महापद्म को हाथी की ओर बढ़ते हुए देख कर रुकने का कहा। किंतु राजकुमार महापद्म, उन्हें आश्वासन देता हुआ हाथी के निकट चला गया और मुष्ठि प्रहार किया। हाथी, कुमार को पकड़ने के लिए पलटा, इतने में महापद्म उसकी पूंछ पकड़ कर उस पर चढ़ गया और मुष्टि प्रहार करने लगा। मण्डुकासन आदि रक्षक उपायों से अपने को बचाता हुआ वह हाथी पर मुष्टि प्रहार करने लगा। कुंभस्थल पर प्रहार, कंठ पर अंगठे का दबाव, पीठ पर पाद प्रहार आदि विविध प्रकार के आघात से गजराज का मद
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