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नन्दीसेन
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अभिग्रह ग्रहण करने के बाद नन्दीसेन मुनि अग्लान -भाव से वैयावृत्य करने लगे । बाल हो या बृद्ध, रोगी हो या तपस्वी, किसी भी साधु को सेवा की आवश्यकता हो, तो नन्दीसेन मुनि तत्पर रहते थे। उनकी वैयावृत्य की साधना सर्वत्र प्रशंसनीय हुई, यहाँ तक कि सुधर्मा - सभा को सम्बोधित करते हुए सौधर्म स्वर्ग के अधिपति शकेन्द्र ने कहा;
• देवगण ! वैयावृत्य रूपी आभ्यन्तर तप की साधना करने में, भरतक्षेत्र में इस समय महात्मा नन्दीसेन मुनि सर्वोच्च साधक हैं। उनके समान साधक अन्य कोई नहीं है । वे वैयावृत्य के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । धन्य है ऐसे विशुद्ध एवं शुद्ध साधक महात्मा को ।" देवेन्द्र की बात में सारी देवसभा सहमत हुई । बहुत-से देव भी देवेन्द्र की अनुमोदना करते हुए धन्य धन्य करते हुए महात्मा के प्रति भक्ति प्रदर्शित करने लगे । कई असम्यग्दृष्टि देव मौन रह कर भी बैठे रहे । किन्तु एक देव, इन्द्र की बात पर अविश्वासी हो कर उठ खड़ा हुआ और सच्चाई को परखने के लिए स्वर्ग छोड़ कर मनुष्यलोक में आया । उसने अपना एक रूप असाध्य रोगी मुनि जैसा बना कर उसी उपवन में, एक वृक्ष के नीचे पड़ गया और दूसरा रूप बना कर नन्दीसेन मुनि के समीप आया । उस समय नन्दीसेन मुनि तपस्या का पारणा करने के लिए प्रथम ग्रास हाथ से उठा ही रहे थे कि उने पुकारा;
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'अरे ओ वैयावृत्यी नन्दीसेन मुनि ! तुम महावैयावृत्यी कहलाते हो, किंतु में देखता हूँ कि तुम केवल प्रशंसा के भूखे ढोंगी हो । वहाँ एक असाध्य रोंगी मुनि तड़प रहा है और यहाँ आप आनन्द से भोजन कर रहे हैं। देखी तुम्हारी वैयावृत्य ! कदाचित् अपने पेट और मन की ही वैयावृत्य करते होंगे तुम ?"
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नन्दीसेनजी का हाथ में लिया हुआ प्रथम ग्रास फिर पात्र में गिर गया । तत्काल उठे और पूछा - " महात्मन् ! कहाँ है वे रोग पीड़ित मुनि ? क्या हुआ उन्हें ? शीघ्र बताइए, में सेवा के लिए तत्पर हूँ ।"
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" निकट के उपवन में ही अतिसार रोग से पीड़ित एक मुनि पड़े हैं ।" नन्दीसेन मुनि शुद्ध पानी की याचना करने निकले, किन्तु देव माया से सभी घरों का पानी अनैषणीय होता रहा । किन्तु मुनि लब्धिधारी थे, इसलिए देव-माया भी अधिक नहीं चल सकी और महात्मा को एक स्थान से शुद्ध पानी प्राप्त हो गया, जिसे ले कर वे उन रोगी मुनि के समीप आये । नन्दीसेन मुनि के निकट आने पर रोगी बना हुआ ढोंगी साधु बोला ;'अरे ओ अधम ! मैं यहाँ मर रहा हूँ और तुझे इसकी चिन्ता ही नहीं ? अपनी उदर-सेवा करने के बाद बड़ा मस्त बना हुआ झुमता- टहलता चला आ रहा है ? ऐसा
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