SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट गंगदत्त मुनि चरित्र (भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी का चरित्र भी विशाल होगा और उनके समय तथा बाद में उनके तीर्थ में बहुत-से महापुरुष हुए होंगे, किन्तु उनका चरित्र उपलब्ध नहीं है । किसी भी तीर्थङ्कर भगवंत से सम्बन्धित एवं उल्लेखनीय सभी आत्माओं के चरित्र का उल्लेख होना सम्भव नहीं है । हमारे निकटवर्ती भगवान् महावीर प्रभु से सम्बन्धित सभी घटनाएँ और चरित्र भी पूरे नहीं लिखे जा सके होंगे, तब पूर्व के तीर्थङ्करों के तो हो ही कैसे? भगवान् का चरित्र छप चुकने के बाद मुझे विचार हुआ कि "प्रथम स्वर्ग के अधिपति शक्रेन्द्र का जीव, पूर्वभव में भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी का शिष्य था। इसका चरित्र क्यों नहीं आया ? कार्तिक सेठ तो उसी समय हुए थे ।" मैने भगवती सूत्र श. १८ उ. २ देखा, तो उसमें स्पष्ट उल्लेख दिखाई दिया और उसी में गंगदत्त का उल्लेख देख कर श. १६ उ. ५ देखा । ये दोनों चरित्र न तो त्रि. श. पु. च. में है और न चउ. म. च. में । बाद के लेखकों ने भी इन्हें स्थान नहीं दिया। मैं भगवती सूत्र के आधार से यहाँ दोनों चरित्र उपस्थित करता हूँ।) हस्तिनापुर नगर में गंगदत्त नामक गाथापति रहता था। वह सम्पत्तिशाली एवं समर्थ था। भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी हस्तिनापुर के सहस्राम्र उद्यान में पधारे । भगवान् के पधारने का समाचार सुन कर गंगदत्त, भगवान् के समीप आया। वन्दना नमस्कार कर के भगवान् का धर्मोपदेश सुना। उसे संसार से विरक्ति हो गई। अपने ज्यष्ठ-पुत्र को गृहभार सौंप कर भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के समीप प्रवजित हो गया । ग्यारह अंग सूत्रों का अध्ययन किया। संयम और तप की साधना करते हुए, आयु-समाप्ति काल निकट जान कर उन्होंने अनशन किया और एक महिने का संथारा पाल कर, आयु पूर्ण कर महाशुक्र के महासामान्य विमान में देवपने उत्पन्न हुआ। वहाँ उनकी आयु स्थिति १७ सागरोपम प्रमाण है । यहाँ के देवभव की आयु पूर्ण कर के गंगदत्त देव महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य भव प्राप्त करेंगे और तप-संयम की आराधना करके मुक्ति प्राप्त करेंगे। यह गगदत्त देव, अमायी सम्यग्दृष्टि है । इसका वहीं के एक मायी-मिथ्यादृष्ठि देव से विवाद हुआ। मायी-मिश्यादृष्टि देव ने गंगदत्त देव से कहा; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy