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तीर्थकर चरित्र
किंतु अब मैं पश्चाताप कर रही हूँ। ये विद्याधर कुमारिकाएं भी आपको वरण करना चाहती है । कृपा कर हम सब को स्वीकार करें। मैं विश्वास दिलाती हूँ कि अब आपसे कभी नहीं रूलूंगी
और आपको हर प्रकार से प्रसन्न रखने का प्रत्यन करूंगी।" साथ की किन्नरियें वादिन्त्र के साथ मथुर संगीत तथा नृत्य करने लगी। उन्होंने बहुत प्रयत्न किया । महामुनि को ध्यान से गिराने की बहुत चेष्टा की, किंतु वे अडिग रहे और घातिकर्मों को नष्ट कर सर्वज्ञ सर्वदर्शी हो गए । वह माघ-शुक्ला द्वादशी की रात्रि का अंतिम पहर था । सीतेन्द्रादि देवों ने केवल-महोत्सव किया। सर्वज्ञ भगवान् रामभद्रजी ने धर्मोपदेश दिया। सीतेन्द्र ने अपने अपराध की क्षमा याचना कर लक्ष्मण और रावण की गति के विषय में पूछा । भगवान् ने कहा--'इस समय शंबुक सहित रावण और लक्ष्मण चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में हैं । वहाँ का आयुपूर्ण कर रावण और लक्ष्मण, पूर्व-विदेह की विजयावती नगरी में जिनदास और सुदर्शन नाम के दो भाई के रूप में होंगे। जिनधर्म का पालन कर सौधर्म देवलोक में देव होंगे। वहाँ से च्यव कर फिर विजयपुर में श्रावक होंगे। वहाँ का आयु पूर्ण कर हरिवर्ष क्षेत्र में युगलिक होंगे । वहाँ से मर कर देव होंगे । वहाँ से च्यव कर पुनः विजयपुरी में जयकान्त और जयप्रभ नाम के राजकुमार होंगे । वहाँ संयम की आराधना कर के लांतककल्प में देव होंगे। उस समय तुम अच्युत कल्प से च्यव कर इस भरतक्षेत्र में सर्वरत्नमति नाम के चक्रवती बनोगे और वे दोनों लांतक देवलोक से च्यव कर तुम्हारे पुत्र होंगे-- इन्द्रायुध और मेघरथ । तुम दीक्षित होकर दूसरे अनुत्तर विमान में उत्पन्न होंगे। रावण का जीव इन्द्रायुध तीन शुभ भव करके तीर्थकर नाम कर्म का बन्ध करेगा और तीर्थकर होगा । उस समय तुम अनुत्तरविमान से मनुष्य हो कर तीर्थंकर के गणधर बनोगे और आयु पूर्ण कर मोक्ष प्राप्त करोगे । लक्ष्मण का जीव मेघरथ, शुभगति प्राप्त करता हुआ पुष्करवर द्वीप के पूर्व विदेह की रत्नचित्रा नगरी में चक्रवर्ती बनेगा और दीक्षित हो क्रमशः तीर्थंकर पद प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त करेगा।
भविष्य-कथन सुन कर सीतेन्द्र ने सर्वज्ञ भगवान् रामभद्रजी की वन्दना की और स्नेहवश लक्ष्मणजी के पास नरक में आये । उस समय वहां शबुक और रावण के जीव, सिंह रूप बना कर लक्ष्मण के जीव के साथ क्रोधपूर्वक युद्ध कर के दुःखी हो रहे थे। सीतेन्द्र ने उन्हें सम्बोधन कर कहा--"तुम क्यों द्वेषवश आपस में लड़ कर दुःखी हो रहे हो। तुम मनुष्य-भव में कितने समृद्धिशाली बलवान् और राज्याधिपति थे। तुमने मनुष्यभव का सदुपयोग नहीं किया और लड़ाई-झगड़े, वैर-विरोध और जन-संहारक युद्ध
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